मन की आँखें

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anubha
मन की आँखें खोल के
देखो ये संसार,
चहुँओर प्रेम दिखेगा
और दिखेगा प्यार।
जो तुम्हारी आँखें देखती
वो अक्सर सच नहीं होता,
आँखों देखा हाल भी
झूठ के बीज है बोता।
मन होता है गंगाजल जैसा
पावन और पवित्र,
इसके अनुरुप तुम चलो
और,बनो सबके मित्र।
ह्रदय की कोमलता
और,मन की पावनता,
दोनों मिलकर बनाती हैं
हमारी अपनी शालीनता।
आत्मा, मन और ह्रदय तीनों
हमारे सच्चे हितैषी हैं,
कलुष-भाव जो आते मन में
वो, समझो-विदेशी हैं।
आओ,आँखें बन्द करके
प्रभु के दर्शन करते हैं,
मन की आँखों से देख के
प्रभु को नमन करते हैं…।
प्रभु को नमन करते हैं…॥
                                                                #अनुभा मुंजारे’अनुपमा’
परिचय : अनुभा मुंजारे बिना किसी लेखन प्रशिक्षण के लम्बे समय से साहित्यिक क्षेत्र में सक्रिय हैं। आपका  साहित्यिक उपनाम ‘अनुपमा’,जन्म तारीख २० नवम्बर १९६६ और  जन्म स्थान सीहोर(मध्यप्रदेश)है।
शिक्षा में एमए(अर्थशास्त्र)तथा बीएड करने के बाद अभिरुचि साहित्य सृजन, संगीत,समाजसेवा और धार्मिक में बढ़ी ,तो ऐतिहासिक पर्यटन स्थलों की सैर करना भी काफी पसंद है। महादेव को इष्टदेव मानकर ही आप राजनीति भी करती हैं। आपका निवास मध्यप्रदेश के बालाघाट में डॉ.राममनोहर लोहिया चौक है। समझदारी की उम्र से साहित्य सृजन का शौक रखने वाली अनुभा जी को संगीत से भी गहरा लगाव है। बालाघाट नगर पालिका परिषद् की पहली निर्वाचित महिला अध्यक्ष रह(दस वर्ष तक) चुकी हैं तो इनके पति बालाघाट जिले के प्रतिष्ठित राजनेता के रुप में तीन बार विधायक और एक बार सांसद रहे हैं। शाला तथा महाविद्यालय में अनेक साहित्यिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेकर विजेता बनी हैं। नगर पालिका अध्यक्ष रहते हुए नगर विकास के अच्छे कार्य कराने पर राज्य शासन से पुरस्कार के रूप में विदेश यात्रा के लिए चयनित हुई थीं। अभी तक २०० से ज्यादा रचनाओं का सृजन किया है,जिनमें से ५० रचनाओं का प्रकाशन विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में हो चुका है। लेखन की किसी भी विधा का ज्ञान नहीं होने पर आप मन के भावों को शब्दों का स्वरुप देने का प्रयास करती हैं।

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