एक ही मकान में रहते थे। पुराने शहर में बड़ी-बड़ी हवेलियों में से एक हवेली में हमारा परिवार रहता था। हवेली के बीच में बहुत बड़ा बरामदा था और उसके इर्द-गिर्द छोटे-छोटे कमरे। तीन मंजिला हवेली में कुछ याद नहीं,लेकिन दस से बारह परिवार रहतेथे। वह रिश्ते में हमारी `ताई` लगती थी। तेजतर्रार ताई से हम बच्चों को डर लगता था। बिना किसी बात के डांटना उनकी आदत थी। अक्सर पिटाई भी कर देती थी।मां से शिकायत करते,लेकिन मां को भी धमका देती थी। हवेली के बड़े बच्चे ताई को तंग करते और पिट हम छोटे बच्चे जाते।
धीरे-धीरे उम्र बढ़ी और बातों को समझने लगे। हवेली में ताई सबसे अमीर थी और उनके पिता धनी व्यापारी थे,जिनकी दुकान पर पिताजी मुनीम थेl। इस कारण माता-पिता ताई के आगे झुक जातेथे। तेजतर्रार ताई के आगे ताऊ भी दबते थे। पढ़ने के बाद नौकरी कर ली। दूसरे शहर नौकरी लगी। होली-दिवाली पर घर आना होता। ताई का तेजतर्रार जलवा अभी भी कायम था।
बचपन की तरह अब भी ताई से दूर रहता। कभी सामने आ जाता,तब पीछा छुड़ाना मुश्किल होता। तीखे प्रश्नों से नफरत होती। कितना कमाता है ? इससे अधिक तो मैं तनख्वाह दिलवा दूंगी। दुकान पर बैठ जा। कब तक बाप से नौकरी करवाएगा ?
इन प्रश्नों को झेलना मुश्किल होता था। पिताजी इशारा कर देते कि,ताई से उलझना नहीं। रिश्ते में बड़ी है। आर्थिक स्थिति बहुत गुणा है और हम उसके नौकर भी हैं। हवेली में रहने के लिए कमरा दिया है। उनका खाया नमक उनके आगे झुकाता है।
हमेशा सेठानी की तरह सब पर हुकुम चलाती थी। दबी जबान में हम उसे `हंटरवाली सेठानी` कहते थे।
उनके पुत्र का विवाह उनसे भी अधिक अमीर परिवार में हुआ। बड़े घर से आई पुत्रवधू दो दिन भी हवेली में नहीं रही। दहेज में कोठी मिली,जहां विवाह के दो दिन बाद ही चली गई। ताई भी कोठी में रहने लगी। हवेली में उसने अपना हिस्सा बेच दिया और हमें हवेली छोड़नी पड़ी।
मैं माता-पिता के संग अपनी नौकरी वाले दूसरे शहर रहने लगा। पिताजी को भी मेरी कंपनी में नौकरी मिल गई और एक अरसा बीत गया ताई से मिले।
ताऊ के निधन पर परिवार के साथ अंतिम संस्कार और शोक समारोह में सम्मिलित हुआ। ताई अब ढल गई थी। `हंटरवाली सेठानी` की पदवी उनकी पुत्रवधू ने हासिल कर ली थी। अधिक आर्थिक संपन्नता के कारण पुत्रवधू ताई पर हावी हो गई।
ताई की दयनीय स्थिति देखकर प्रसन्नता नहीं हुई। अब दुनियादारी समझते थे। वह शोक की घड़ी थी। ताई की स्थिति देख दुख हुआ। माताजी ने घर लौटने पर कहा कि,ऐसे व्यक्ति अपनी औलाद के आगे झुकते हैं। सारी उम्र सब पर रौब रखा,अब उस पर रौब रखने वाली आ गई।
मैंने मां से पूछा कि,क्या वह ताई की दयनीय स्थिति पर खुश है। पल्लू से नम आंखें पोंछती हुई बोली `नहीं, उल्टे दुख होता है। कभी सोचा नहीं था कि,सेर को सवा सेर मिलेगा। समय बलवान होता है। हमें हर हालात में विन्रमता से रहना चाहिए। भगवान ऐसे दिन किसी को न ही दिखाए।`
समय गुजरता गया और ताई से मिलना छूट गया। कुछ वर्ष बाद कार्यालय के काम से जाना हुआ। कंपनी के `मेहमान घर` में रुकना हुआ। यह ताई की कोठी के सामने वाली कोठी में था। सुबह बालकनी में योगा करने आया। सामने बालकनी में ताई को रेलिंग के सहारे खड़ा नीचे आते-जाते व्यक्तियों को देखता पाया। उम्र से अधिक बूढ़ी लग रही थी। मोटी सेठानी आज दुबली नौकरानी-सी लग रही थी। मुख से ताई अपने-आप निकल आया। मुझे देख ताई की आंखों में आंसू आ गए और चेहरे पर चमक। ताई ने मुझे अपने पास आकर मिलने को कहा। योगा को छोड़ मैं तुरंत ताई से मिलने पहुंचा। द्वार पर दरबान ने रोक दिया।
`मैं अपनी ताई से मिलना चाहता हूं। वो मेरी ताई हैं।`
`माफ कीजिए। बुढ़िया से कोई नहीं मिल सकता। मालकिन का हुक्म है।` दरबान ने मजबूरी जताई।
`मैं मालकिन से बात करता हूं।`
तभी कानों में ताई की पुत्रवधू की आवाज सुनाई दी। `कितनी बार मना किया है किसी से बात नहीं करनी। पता नहीं,राह चलते नत्थू खैरों को घर बुला लेती है।`
इतना सुन मैं कुछ कह नहीं सका। टुक-टुक ताई को देखा। ताई पल्लू से आंखें साफ कर रही थी। घर में कैद ताई की दयनीय स्थिति देख आंखें छलक गई और मेहमान घर की ओर मुड़ गया।
पीछे मुड़कर देखा। पुत्रवधू ताई को घसीटकर कमरे के अंदर ले गई।
#मनमोहन भाटिया
परिचय: मनमोहन भाटिया की जन्म तिथि-२९ मार्च १९५८ और जन्म स्थान-दिल्ली हैl आपने बी.कॉम.(ऑनर्स) तथा एल. एल.बी. की शिक्षा दिल्ली विश्वविद्यालय से हासिल की हैl संप्रति से आप होटल(प्राईवेट लि.)में सहायक प्रबंधक(वित्त और लेखा) हैंl कहानियाँ लिखना आपका शौक है,इसलिए फुर्सत के पलों में शब्दों को मिलाते रहते हैंl आपके द्वारा रचित कहानियाँ कई पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हुई हैं तो, महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय की वेबसाईट में भी कहानी संकलन है। राजकमल प्रकाशन की पुस्तक `कहानियां रिश्तों की-दादा-दादी नाना-नानी` में कहानी-`बड़ी दादी`प्रकाशित हैl कहानी `ब्लू टरबन` का तेलुगू अनुवाद अनुवादक भी हुआ है तो `अखबार वाला` का उर्दू अनुवाद हो चुका है। कई अखबारों में सामयिक विषयों पर पत्र भी लिखे हैंl आपको सम्मान-पुरस्कार के रूप में २००६ में प्रतियोगिता में ‘लाईसेंस’ कहानी को द्वितीय,२००८ में ‘शिक्षा’ कहानी और २०१६ में लोकप्रिय लेखक से सम्मानित किया गया हैl आपका निवास पिंक सोसाइटी(रोहिणी)दिल्ली में हैl