उल्लास,उमंग और जोश से भरा एक कारवाँ अपने पूरे चरम पर था..,
जहाँ हर कोई उत्साह से लबरेज था..
पर यह क्या,सामने आंखों में अश्रु समेटे एक किशोरी रथ की ओर बढ़ी चली आ रही थी….। वो ठहरी और भीड़ के भगवान को सांत्वना देती हुई निकल गई…।भगवान जी के चेहरे के भाव अब लगातार परिवर्तित हो रहे थे..।
वो होनी को नजरअंदाज करते भगवान जी होने के गुमान में अपने ‘राम’ के साथ चले जा रहे थे….। तभी कारवाँ चरम पर पहुंचा…। भगवान अपने ‘राम’ को छोड़कर चले गए…। कुछ ही क्षणों में भगवान जी का भगवान से विश्वास डगमगा गया..। जीवन के सबसे बड़े दुःख से जो सामना करना था..।हो भी क्यों न??आखिर भगवान जी जो ठहरे…..। भगवान जी अपने ‘राम’ के बिना वापस आ गए…। रात्रि के प्रहर सदियों के गहरे काले कालक्रम की तरह बीत रहे थे…। भीड़ के भगवान के दुःख का कोई असर भीड़ पर नहीं था…। खुद को मेरे प्रिय का ‘राम’ कहने वाली भीड़ सम्मान की फूलमाला पहनकर गंतव्य को चली जा रही थी…।
प्रातः की भोर के साथ ‘राम’ के आने का सिलसिला प्रारंभ हुआ..। उस दिन ‘राम’ और तथाकथित ‘राम’ में अंतर का बोध हुआ…। अतः सही समय में ‘राम’ का बोध होना जीवन को कठिनाइयों से उभार सकता है,वरना तथाकथित ‘राम’ से घिरे होना मार्ग से भटका सकता है। ‘राम’ की पहचान की कीमत तय करना आवश्यक है…।
अतएव विलंब किए वगैर प्रयास आरम्भ करें…।।।
परिचय : छिंदवाड़ा (मध्यप्रदेश)निवासी ऋषभ एस. स्थापक विभिन्न विषयों पर शौक से कलम चलाते हैं। आप कलेक्टर कार्यालय के महिला एवं बाल विकास विभाग (छिंदवाड़ा)में कार्यरत हैं । 22वर्ष आपकी आयु है।
बहुत गहरा। अद्भुत संदेश।
ऋषभ बेहतरीन