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शिकवों-शिकायतों ने कहा
हाले-दिल सनम।
लब सिर्फ़ मुस्कुराते रहे,
आँख थी न नम॥
कानों में लगी रुई ने किया
काम ही तमाम-
हम ही से चूक हो गई
फ़ोड़ा नहीं जो बम।
उस्ताद अखाड़ा नहीं,
दंगल हुआ ?, हुआ।
बाकी ने वृक्ष एक भी,
जंगल हुआ ? हुआ।
दस्तूर जमाने का अजब,
गजब ढा रहा-
हाय-हाय कर कहे
मंगल हुआ ?, हुआ॥
घर-घर में गान्धारियाँ हैं,
कोई क्या करे ?
करती न रफ़ू आरियाँ हैं,
कोई क्या करे ?
कुन्ती,विदुर न धर्मराज
शेष रहे हैं-
शकुनि-अशेष पारियाँ हैं,
कोई क्या करे ?
#संजीव वर्मा सलिल
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