(बाल दिवस
पर विशेष)
प्यारे बच्चों,
बहुत-बहुत प्यार,आप सभी को `बाल दिवस` की ढेरों शुभकामनाएं। ये दिन आपके लिए ही बनाया गया है-खूब खेलो,मस्ती करो,साथ ही थोड़ा पढ़ो भी। आप जितने बड़े होते हो,उसी अनुसार दुनिया का आकलन करते हो,जबकि आपके माता-पिता अपनी उम्र और अनुभवों के आधार पर दुनिया देखते हैं। जब वे कोई बात कहते हैं,तो उसके पीछे कुछ गहन चिंतन होता है। ये बात आप तब समझोगे,जब उनके जितने अनुभवों से गुजर चुके होंगे। अगर वे पढ़ाई न करने या अच्छे अंक न लाने पर तुम्हें डांटते हैं तो,इसके पीछे उनकी मंशा ये रहती है कि,तुम अपने हमउम्र लोगों से पिछड़ न जाओ, जमाने के साथ आगे बढ़ो,ताकि अपने सपने पूरे कर सको। वे तुम्हें परेशान और किसी से कमतर नहीं देखना चाहते। तुम कई बार दिन-रात मोबाइल,पढ़ाई या दोस्तों में ही लगे रहते हो,क्या कभी मम्मी-पापा से ये पूछते हो कि,अपने खाना खाया या नहीं ? अपनी दवाइयाँ ली या नहीं ?,जबकि उन्हें आपके नाश्ते से लेकर रात के खाने तक और स्कूल के बस्ते से लेकर अंक तक की चिंता करनी होती है। माँ कई बार अपने मायके से मिले साड़ी के पैसों से तुम्हारी किताब खरीद देती है,तो पापा अपनी सेहत की परवाह न करके तुम्हारी फीस का इंतजाम करते हैं। ऐसे में तुम्हारे कम अंक लाने पर उनका चिंतित होना लाज़मी रहता है। ऐसे में अगर वे तुम्हें थोड़ा डांट भी दें,तो आपको बुरा नहीं मानना चाहिए। इस पर विचार करना चाहिए कि,आखिर ये जरूरत क्यों पड़ी। सोचिए,अगर वे गलती पर डांटते हैं तो अच्छे कामों पर आपकी तारीफ भी तो उतनी ही करते हैं। अगर तुम्हारी रूचि किसी और काम जैसे-खेल,संगीत,अभिनय या किसी अन्य क्षेत्र में जाने की हो,और तुम पर पढ़ाई का दबाव लग रहा हो,तो सबसे पहले अपने माता-पिता से इस बारे में बात करो। यह बात उनसे कह नहीं पाओ,तो अपने अध्यापक,रिश्तेदार या किसी अन्य व्यक्ति से इस बारे में बात करो,ताकि वो आपके अभिभावकों को समझा सकें। प्यारे बच्चों,ये जीवन बहुत अनमोल है। इसे बहुत सम्हाल कर रखना चाहिए। एक बात हमेशा याद रखो, कि तुम्हें बड़ा करने में तुम्हारे माँ-बाप ने दिन-रात एक किए हैं। अपनी नींद,खान-पान और घूमने-फिरने की चिंता छोड़कर तुम्हें बड़ा करने,स्वस्थ रखने में ही अपना वक्त जाया किया है। उसके बदले में वह केवल तुम्हारा सुखद भविष्य चाहते हैं,तुम्हें ऊंचाइयों पर देखना चाहते हैं। वे चाहते हैं कि,तुम्हें किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े,इससे ज्यादा कुछ नहीं। आशा है,तुम उनके `मन की बात` समझोगे,और माता-पिता तथा शिक्षकों की बातों को मानोगे और उन पर अमल करोगे।
#सुषमा दुबे
परिचय : साहित्यकार ,संपादक और समाजसेवी के तौर पर सुषमा दुबे नाम अपरिचित नहीं है। 1970 में जन्म के बाद आपने बैचलर ऑफ साइंस,बैचलर ऑफ जर्नलिज्म और डिप्लोमा इन एक्यूप्रेशर किया है। आपकी संप्रति आल इण्डिया रेडियो, इंदौर में आकस्मिक उद्घोषक,कई मासिक और त्रैमासिक पत्र-पत्रिकाओं का सम्पादन रही है। यदि उपलब्धियां देखें तो,राष्ट्रीय समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में 600 से अधिक आलेखों, कहानियों,लघुकथाओं,कविताओं, व्यंग्य रचनाओं एवं सम-सामयिक विषयों पर रचनाओं का प्रकाशन है। राज्य संसाधन केन्द्र(इंदौर) से नवसाक्षरों के लिए बतौर लेखक 15 से ज्यादा पुस्तकों का प्रकाशन, राज्य संसाधन केन्द्र में बतौर संपादक/ सह-संपादक 35 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है। पुनर्लेखन एवं सम्पादन में आपको काफी अनुभव है। इंदौर में बतौर फीचर एडिटर महिला,स्वास्थ्य,सामाजिक विषयों, बाल पत्रिकाओं,सम-सामयिक विषयों,फिल्म साहित्य पर लेखन एवं सम्पादन से जुड़ी हैं। कई लेखन कार्यशालाओं में शिरकत और माध्यमिक विद्यालय में बतौर प्राचार्य 12 वर्षों का अनुभव है। आपको गहमर वेलफेयर सोसायटी (गाजीपुर) द्वारा वूमन ऑफ द इयर सम्मान एवं सोना देवी गौरव सम्मान आदि भी मिला है।