इंटरनेट की दुनिया ने हिंदी या कहे प्रत्येक भाषा के साहित्य और लेखन को जनमानस के करीब और उनकी पहुँच में ला दिया है, इससे रचनाकारों की लोकप्रियता में भी अभिवृद्धि हुई है। किन्तु इन्ही सब के बाद उनके सृजन की चोरी भी बहुत बड़ी है। जिन लोगो को लिखना नहीं आता या सस्ती लोकप्रियता के चलते वो लोगो अन्य प्रसिद्द लोगो की रचनाओं को तोड़ मरोड़ कर या फिर कई बार तो सीधे उनका नाम हटा कर खुद के नाम से प्रचारित और प्रकाशित भी करवा लेते है। ऐसी विकट स्थिति में असल चोर द्वारा कई बार इतना प्रचार कर दिया जाता है कि कई बार तो मूल रचनाकर को भी लोगो साहित्य चोर समझ लेते है। साहित्यिक सामग्रियों की चोरी कर अपने प्रकाशित साहित्य या सन्दर्भ में शामिल कर लेना, अखबारों या सोशल मीडिया में अपने नाम से प्रचारित करना, दूसरे की कविता वे सरेआम मंचों से सुनाना, साझा संग्रहों में स्वयं के नाम से दूसरे की रचनाएं प्रकाशित करवाना आदि साहित्य चोरो का प्रिय शगल बन चुका है।
किसी दूसरे की भाषाशैली, उसके विचार, उपाय, आदि का अधिकांशतः नकल करते हुए अपने मौलिक कृति के रूप में प्रकाशन करना साहित्यिक चोरी की श्रेणी में आता है। यूरोप में अट्ठारहवीं सदी के बाद ही इस तरह का व्यवहार अनैतिक व्यवहार माना जाने लगा था, इसके पूर्व की शताब्दियों में लेखक एवं कलाकार अपने क्षेत्र के श्रेष्ठ सृजन की हूबहू नकल करने के लिये प्रोत्साहित किये जाते थे। साहित्यिक चोरी तब मानी जाती है, जब हम किसी के द्वारा लिखे गए साहित्य को बिना उसका सन्दर्भ दिए अपने नाम से प्रकाशित कर लेते हैं। आज जब सूचना प्रौद्योगिकी का विस्तार तेजी से हुआ है, ऐसे में पूरा विश्व एक वैश्विक गाँव में बदल गया गया है और ऐसे में साहित्य चोरों के अनैतिक कार्य आसानी से पकड़ में आ जाते हैं।
इस समस्या को ‘प्लेगरिज्म’ कहा जाता है और यह अकादमिक बेईमानी है। प्लेगरिज्म कोई अपराध नहीं है बल्कि नैतिक आधार पर तो अमान्य है। इंटरनेट से कोई लेख डाउनलोड कर लेना, किसी और को अपने लेखन के लिए काम पर रख लेना, दूसरे के विचारों को अपने विचार दिखाने का प्रयास करना भी साहित्यिक चोरी मानी जाती है।
कानून रूप से भी देखा जाये तो साहित्यिक चोरी धोखाधड़ी की श्रेणी में भी आता है। इसके गंभीर परिणाम भी हो सकते हैं। अगर आप किसी अन्य के रचनात्मक कार्य का उपयोग करते हैं, तो आप को उनके हर स्रोत का श्रेय देना होगा, इसलिए ऑनलाइन या मुद्रित सामग्री के लिए फुटनोट या उद्धरण का उपयोग करें। किसी भी समय आप किसी अन्य व्यक्ति द्वारा लिखी, रचना, आकर्षित या आविष्कार किए गए किसी भी चीज़ का हिस्सा या किसी का उपयोग करते हैं, तो आपको उन्हें क्रेडिट देना होगा। यदि आप लेखन या विचारों को चोरी करते हैं और उन्हें अपने ही रूप में बंद करते हैं, तो आप पकड़े जा सकते हैं।
क्या कहता है कानून:
बौद्धिक सम्पदा अधिकार: बौद्धिक सम्पदा (Intellectual property) किसी व्यक्ति या संस्था द्वारा सृजित कोई संगीत, साहित्यिक कृति, कला, खोज, प्रतीक, नाम, चित्र, डिजाइन, कापीराइट, ट्रेडमार्क, पेटेन्ट आदि को कहते हैं। जिस प्रकार कोई किसी भौतिक धन (फिजिकल प्रापर्टी) का स्वामी होता है, सी प्रकार कोई बौद्धिक सम्पदा का भी स्वामी हो सकता है। इसके लिये बौद्धिक सम्पदा अधिकार प्रदान किये जाते हैं। आप अपने बौद्धिक सम्पदा के उपयोग का नियंत्रण कर सकते हैं और उसका उपयोग कर के भौतिक सम्पदा (धन) बना सकते हैं। इस प्रकार बौद्धिक सम्पदा के अधिकार के कारण उसकी सुरक्षा होती है और लोग खोज तथा नवाचार के लिये उत्साहित और उद्यत रहते हैं। बौद्धिक संपदा कानून के तहत, इस तरह बौद्धिक सम्पदा का स्वामी को अमूर्त संपत्ति के कुछ विशेष अधिकार दिए है, जैसे कि संगीत, वाद्ययंत्र साहित्य, कलात्मक काम, खोज और आविष्कार, शब्दों, वाक्यांशों, प्रतीकों और कोई डिजाइन.आदि।
इस तरह की साहित्यिक चोरियां इंटरनेट आम हो चली है, कई चोरो के हौसले तो इतने बुलंद है कि वे लोगो की रचनाओं में कुछ एक शब्दों का हेर फेर करके खुद की पुस्तक भी मुद्रित करवा लेते है। इस तरह चोरी से बचने के लिए साहित्यकारों को भी कुछ प्रबंध करना होंगे जैसे –
- सबसे पहले तो अपनी मौलिक रचनाएँ अपने ब्लॉग पर मय दिनांक और समय के साथ प्रकाशित करे। ऐसा करने से आपकी रचनाओं के प्रथम प्रकाशन का सन्दर्भ और मौलिकता का साक्ष्य उपलब्ध होगा।
- सोशल मीडिया में प्रकाशन के पूर्व रचनाएं साझा करने से बचें, अन्यथा आप सबुत देने में असमर्थ रहेंगे और साहित्यचोर उस पर खुद की मौलिकता का प्रमाण दर्ज कर लेगा।
- यदि आपने भी किसी सन्दर्भ का उपयोग किया है तो सन्दर्भ सूचि में उसका उल्लेख जरूर करे, अन्यथा आप पर भी साहित्य चोरी का आरोप लग सकता है।
- सोशल मीडिया में रचनाओं को हर जगह अपने ब्लॉग की लिंक या जहाँ प्रकाशित हुई है उसी सन्दर्भ के साथ साझा करें, यह चोर की मनोस्थिति पर भी प्रभाव डालेगा।
- कही भी आपको आपकी रचनाओं की चोरी नजर आये तो तुरंत उसकी शिकायत मय पर्याप्त साक्ष्य के और स्वयं की मौलिक रचना होने के साक्ष्य के साथ नजदीकी पुलिस थाने में शिकायत दर्ज करवाएं।
- अपनी पुस्तकें मय आईएसबीएन (ISBN) के प्रकाशित करवाएं
प्लेजरिज्म से बचने के लिए कुछ आम टिप्स:
- शुरुआत में बिना किसी कोट, डाटा, रिपोर्ट, रिसर्च की मदद लिए अपने विचारों को लिखने की आदत डालें।
- किसी और का आइडिया चुराने से बचने के लिए, आर्टिकल लिखने से पहले ही अपने तर्क और तथ्य तैयार कर लें। ध्यान रहे कि किसी और के आइडियाज़ से आपका अपना आर्टिकल तैयार नहीं हो सकता, हां वो आपके लेख में रेफरेंस के तौर पर ज़रूर हो सकते हैं।
- याद रखिये कि निजी विचारों और तथ्यों के बीच बाल भर का फर्क होता है। इस फर्क को हमेशा दिमाग में रखे। मसलन, “माहवारी एक ऐसी वजह है जिसके कारण भारत की 80% महिलाएं शोषण और दमन का सामना कर रही हैं।” यह एक तथ्य है जिसकी सत्यता को उचित सोर्स से प्रमाणित किया जाना ज़रूरी है।” “मुझे नहीं लगता कि मेंसट्रुअल लीव पॉलिसी भारत में महिलाओं की बड़ी समस्याओं को हल कर पाएगी।” ये पूरी तरह से एक निजी विचार है जिसे सत्यापित करने की ज़रूरत नहीं है। लेकिन अगर आपके लेख में कोई आंकड़ा या तथ्य शामिल है तो उसका सत्यापन किया जाना बहुत ज़रूरी है।
- जानकारी के लिए अन्य वेबसाइट्स और श्रोतों से कॉपी पेस्ट कर रहे हैं तो संभल जाएं। ज़ाहिर सी बात है कि इन वेबसाइट्स और जानकारी के श्रोतों को भी अपनी मीडिया सामग्री को लेकर उतनी ही चिंता होगी जितनी की आपको है। अपने लेख में इस्तेमाल की गई जानकारियों का सोर्स लिखना कभी ना भूलें।
शिक्षा विभाग में तो आगया रेगुलेशन एक्ट
विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) के सचिव पी के ठाकुर ने विश्वविद्यालयों सहित छात्रों के नाम जन सूचना जारी की है कि रिसर्च और साहित्य चोरी की घटनाएं बढ़ रही हैं। इसी के चलते यूजीसी ने दूसरे के ज्ञान को अपना बनाने के मामलों पर अंकुश लगाने के लिए विशेषज्ञों की कमेटी बनाई थी, जिसकी सिफारिशों के आधार पर अब साहित्यिक चोरी रोकने के लिए रेग्यूलेशन 2017 तैयार किया गया है। इसके आधार पर रिसर्च स्कालर्स, शिक्षक या विशेषज्ञ अपनी-अपनी राय भेज सकते हैं। यह रेग्यूलेशन नौ पन्नों का है। कमेटी ने अपनी सिफारिश में लिखा है कि साहित्य, रिसर्च की चोरी पर जीरो टॉलरेंस पॉलिसी होनी चाहिए। यदि कोई रिसर्च स्कॉलर्स दस फीसदी सामग्री की चोरी करता पकड़ा गया तो कोई जुर्माना नहीं लगेगा। चालीस फीसदी कंटेंट चुराने वाले छात्र को कोई अंक नहीं दिया जाएगा। साठ फीसदी सामग्री चोरी का इस्तेमाल करने पर रजिस्ट्रेशन तक रोकने की सिफारिश की गई है।
यदि कोई शिक्षक 40 फीसदी तक साहित्यिक चोरी करता पकड़ा जाता है तो लिखित सामग्री को हटाने के साथ ही एक साल तक उसके प्रकाशन पर भी रोक लगेगी। 60 फीसदी से अधिक की चोरी करने पर लिखित सामग्री हटाने के साथ-साथ तीन साल तक प्रकाशन पर रोक लगाने की भी तैयारी है। वहीं, ऐसे शिक्षक को तीन साल तक के लिए अंडरग्रेजुएट, पोस्ट ग्रेजुएट, एमफिल और पीएचडी स्कॉलर्स का गाइड न बनाने की भी सिफारिश की गई है। यदि छात्र गलती करता है तो रजिस्ट्रेशन पर रोक लग जाएगी, जिससे उसकी डिग्री भी ब्लॉक होगी। वहीं, शिक्षक यदि गलती करता है कि उसे एक साल तक प्रकाशन पर रोक के साथ वेतनवृद्धि रुकेगी। वहीं, यदि बार-बार गलती की जाती है तो उसे नौकरी से निकालने का भी प्रावधान होगा।
एमफिल और पीएचडी रिसर्च स्कॉलर्स यदि अपनी थीसिस या रिसर्च में किसी व्यक्ति द्वारा तैयार सामग्री का प्रयोग करते हैं तो उन्हें इसकी जानकारी देनी होगी। यदि कोई स्कॉलर साहित्यिक चोरी करता पकड़ा जाता है तो उसका रजिस्ट्रेशन तक रद्द हो सकता है। वहीं, यदि शिक्षक ऐसा करता पकड़ा गया तो उसके इंक्रीमेंट, प्रकाशन पर रोक लग सकती है। नियमों का बार-बार उल्लंघन करने पर शिक्षक की नौकरी भी जा सकती है।
इन सब के अतिरिक्त मौलिक साहित्य की कमी और साहित्य चोरी जैसी घटनाओं से भाषा की समृद्धता और लेखन शैली प्रभावित होती है। सत्य तो यह भी है कि तथाकथित साहित्य चोरों को सार्वजानिक अपमान का डर न होना भी इसका कारण है। ऐसी स्थिति में हिंदी प्रचार हेतु प्रतिबद्ध अंतरताना मातृभाषा.कॉम द्वारा एक मुहीम भी चलाई जा रही है, जिसमें साहित्य चोरी की घटना को संवेदनशील मसला मान कर सप्रमाण शिकायत आने पर उस साहित्य चोर के विरुद्ध न्यायायिक दावा भी लगाया जाएगा साथ ही सोशल मीडिया पर भी बेनकाब करेगा। इसी तरह से अन्य हिन्दी साहित्यिक संस्थानों को भी आगे आना चाहिए और साहित्य चोरी के विरुद्ध एक सार्थक आवाज़ बन कर खड़े होना होगा, जिससे इस तरह की साहित्य चोरी पर नकेल कस कर भाषा की मौलिकता और अस्तित्व पर मंडरा रहे खतरे से बचा जा सकता है।
#डॉ.अर्पण जैन ‘अविचल’
परिचय : डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ इन्दौर (म.प्र.) से खबर हलचल न्यूज के सम्पादक हैं, और पत्रकार होने के साथ-साथ शायर और स्तंभकार भी हैं। श्री जैन ने आंचलिक पत्रकारों पर ‘मेरे आंचलिक पत्रकार’ एवं साझा काव्य संग्रह ‘मातृभाषा एक युगमंच’ आदि पुस्तक भी लिखी है। अविचल ने अपनी कविताओं के माध्यम से समाज में स्त्री की पीड़ा, परिवेश का साहस और व्यवस्थाओं के खिलाफ तंज़ को बखूबी उकेरा है। इन्होंने आलेखों में ज़्यादातर पत्रकारिता का आधार आंचलिक पत्रकारिता को ही ज़्यादा लिखा है। यह मध्यप्रदेश के धार जिले की कुक्षी तहसील में पले-बढ़े और इंदौर को अपना कर्म क्षेत्र बनाया है। बेचलर ऑफ इंजीनियरिंग (कम्प्यूटर साइंस) करने के बाद एमबीए और एम.जे.की डिग्री हासिल की एवं ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियों’ पर शोध किया है। कई पत्रकार संगठनों में राष्ट्रीय स्तर की ज़िम्मेदारियों से नवाज़े जा चुके अर्पण जैन ‘अविचल’ भारत के २१ राज्यों में अपनी टीम का संचालन कर रहे हैं। पत्रकारों के लिए बनाया गया भारत का पहला सोशल नेटवर्क और पत्रकारिता का विकीपीडिया (www.IndianReporters.com) भी जैन द्वारा ही संचालित किया जा रहा है।