जो कविताओं
को विधाओं के
बंधनों से मुक्त
कर दिया…l
ये जीवन की
विषमताएं,सड़कों-सी
हो चली हैं…,
कहीं गड्ढे तो
कहीं असमान उभार,
मरम्मतें भी
पैबंदों-सी
हो चली है…l
कैसे कोई इन,
खबड़ीले उछलते
रास्तों पर अपने
भावों की स्कूटर
चलाए ???
चलो अच्छा हुआ,
जो कविताओं को
विधाओं के बंधनों
से मुक्त कर दिया…l
सुकोमल पुष्पों
की उपमाओं
चांद,तारों के
आंचल में अब,
नहीं लहराते बिम्ब
मशीनी यंत्रों-सी
शब्दावलियों का
है प्राचुर्य…l
कैसे इस शुष्क
परिवेश को रसायुक्त
गीतों का मधुपान
कराया जाए ???
चलो अच्छा हुआ,
मात्राओं,तुक,लय,
की कीलों पर…
चुभती मोटी नारियल
की रस्सियों-सी
सामाजिक विद्रुपताओं
को कैसे अटकाया जाए ???
भरे पड़े हैं मनोद्गार,
गागर में सागर से
बहुत तेज प्रवाह
बह रहे हैं अतुकान्त,
स्वतंत्र,निर्बाध,निर्झर…l
चलो अच्छा हुआ,
#लिली मित्रा
परिचय : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर करने वाली श्रीमती लिली मित्रा हिन्दी भाषा के प्रति स्वाभाविक आकर्षण रखती हैं। इसी वजह से इन्हें ब्लॉगिंग करने की प्रेरणा मिली है। इनके अनुसार भावनाओं की अभिव्यक्ति साहित्य एवं नृत्य के माध्यम से करने का यह आरंभिक सिलसिला है। इनकी रुचि नृत्य,लेखन बेकिंग और साहित्य पाठन विधा में भी है। कुछ माह पहले ही लेखन शुरू करने वाली श्रीमती मित्रा गृहिणि होकर बस शौक से लिखती हैं ,न कि पेशेवर लेखक हैं।