ढूँढ रही हूँ खुद को टुकड़ों-किरचों में,
ज़िन्दगी टूटकर यूँ बिखरी है।
कुछ में घर-आँगन का अक्स है,
जिन्हें सजाने में तमाम उम्र गुजार दी।
सब हैं पेड़-पौधे,फुलवारी,
यहाँ तक मुंडेर पर बैठे परिन्दे भी।
दूर-दूर तक के रिश्ते नाते भी,
और कर्मों के बही खाते भी।
रौनकें भी हैं,तो गुरबतें भी,
कालचक्र की छोटी-बड़ी हरकतें भी।
दूधवाला,अख़बारवाला,कूड़ेवाला,
सब ही हैं,कहीं-न-कहीं।
आती-जाती गाड़ियों का शोर,
और विक्रेताओं की भीड़ भी है यहीं।
भागती-दौड़ती ज़िन्दगी की तस्वीरें हैं
हर किसी के सपनों की ताबीरें हैं।
पर वो किरच अभी तक नहीं आया हाथ,
जहाँ से मैं नज़र आऊँ।
मैं कहाँ हूँ इनमें ?हूँ भी या नहीं?
कोई अस्तित्व भी है मेरा?
या अब तक अहसास बनकर ही रही ?
मुझे देखना है खुद को,खुद के बदलावों को।
कि कैसी दिखती हूँ ज़िन्दगी की दौड़ में चलते-भागते?
कहीं सुनने की काबिलियत तो,
नहीं चली गई विक्रेताओं के शोर से?
स्याह तो नहीं हो गई गाड़ियों के धुँए से?
पैरों में छाले तो नहीं उभर आए भागते-दौड़ते?
हथेलियाँ दरारों से तो नहीं पट गईं,
लोगों के सपने पूरते?
मुझे देखना है खुद को,पर क्या करुं,
वो टुकड़ा है भी कहाँ ज़िन्दगी का ?
किसी को मिले तो दिखा दो मुझको।
मुझे भी अक्स देखना है खुद की मौज़ूदगी का।
#शशि सिंह
परिचय:शशि सिंह का निवास उत्तर प्रदेश राज्य के शाहजहाँपुर में हैl आपकी जन्मतिथि-१ सितम्बर १९६९ तथा जन्मस्थान-बहराईच(उत्तरप्रदेश) हैl शिक्षा बी.एस-सी. सहित बी.एड. और एम.एड. भी हैl शशि सिंह का कार्यक्षेत्र विज्ञान शिक्षिका (आधार शिक्षा) हैl सामाजिक क्षेत्र में शाहजहाँपुर शहर की कुछ संस्थाओं से जुडकर बालिकाओं की शिक्षा व उन्नयन हेतु सक्रियता से प्रयासरत हैं। लेखन में आपकी विधा-कविता,कहानी,संस्मरण,लेख एवं यात्रा वृतान्त हैl कई पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएं प्रकाशित हुई हैंl आपके लेखन का उद्देश्य-आत्म संतुष्टि व सामाजिक परिवर्तन लाना हैl