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अनुभूति हुई है
रात के सवा तीन बजे
चांद आधा है…
आसमान में तारे चुप है…
वो दूर खडे़ दो टावर…
जिन पर कोई लाल रंग की लाइट नहीं लगी है
घर की छत से…
धुंधले दिखाई पड़ रहे हैं…
पास वाली गली में…
एक बैल…
ऊंघ रहा है…
वो उस घर की छत पर…
ध्वजा चुप है
सरकंडे से लिपटी हुई…
दूर कहीं से ट्रेन के गुजरने की आवाज़
चीरती है कानों को…
शहर गहरी नींद में सोया है…
सुबह की नींद…
मीठी होती है…
भीनी भीनी मीठी मीठी नींद…
गर्मी के मौसम में…
कहीं स्ट्रीट लाइट अपने रोशनी के रंग बिखेर रही है…
तो कहीं घुप्प अंधेरे का फायदा…
चोर उठाते है…
अनुभूति हुई है
रात के सवा तीन बजे
चांद आधा है…
आसमान में तारे चुप है…
वो दूर खडे़ दो टावर…
जिन पर कोई लाल रंग की लाइट नहीं लगी है
घर की छत से…
धुंधले दिखाई पड़ रहे हैं…
पास वाली गली में…
एक बैल…
ऊंघ रहा है…
वो उस घर की छत पर…
ध्वजा चुप है
सरकंडे से लिपटी हुई…
दूर कहीं से ट्रेन के गुजरने की आवाज़
चीरती है कानों को…
शहर गहरी नींद में सोया है…
सुबह की नींद…
मीठी होती है…
भीनी भीनी मीठी मीठी नींद…
गर्मी के मौसम में…
कहीं स्ट्रीट लाइट अपने रोशनी के रंग बिखेर रही है…
तो कहीं घुप्प अंधेरे का फायदा…
चोर उठाते है…घनघना रहे हैं अनगिनत कूलर पंखें…
इस शहर को राहत कहाँ है ?
सड़क किनारे बनी उस चाय की थड़ी….को
उस साठ बरस के हाड़ मांस शरीर ने ग्राहकों के लिए अब…
खोल दिया है..
स्टोव पर उबलने लगी है चाय…
चार बजते बजते…
चहलकदमी शुरू होने लगती है…
अब निकल आयेंगा सूरज चाचू…
अनुभूति….
हर रोज होती है…
शब्द मिल रहे हैं…
आज अनुभूति को…
बन गई है…
मेरी अनुभूति…
#सुनील कुमार
परिचय :सुनील कुमार लेखन के क्षेत्र में धार्विक नमन नाम से जाने जाते हैं। आप वर्तमान में डिब्रूगढ़ (असम)में हैं,जबकि मूल निवास झुन्झुनूं (राजस्थान) है। शैक्षणिक योग्यता एम.ए. (अंग्रेजी साहित्य,समाज शास्त्र,)सहित एम.एड., एमफिल और बीजेएमसी भी है
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