पितृ छाया में 

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ravi rashmi
पिता, पिता ही नहीं, पिता बनकर पिता रुप में,
पिता एक बहुत ही महान आत्मा होती है
कर्मठता यदि उसकी कुछ कर नहीं पाती है,तो
अन्तरात्मा उसकी सिसक-सिसककर रोती है।
पिता परिवार का मुखिया, पालनकर्ता है,
इसलिए पिता भरसक यह कोशिश करता है कि,
पेट अपना चाहे भरे,न भरे पर यह सत्य है ,                                                        वह अपने बच्चों के जैसे भी हो,पूरे पेट भरता है।
पिता चाहे मज़दूर हो किसी फ़ैक्टरी का,
दफ़्तर चाहे घर से कितना भी दूर हो
भरसक समय-पालन का वह ध्यान रखता है,
सोचता है कोई पिता न कभी भी,मजबूर हो।
कठिन परिश्रम करता है,जीवन में पिता,
परिवार की ज़रुरतें समझता है,एक पिता
साहब का हुक्म बजाने में,कोई कसर नहीं छोड़ता,
ऊँचे सपने सदा ही पालता है,एक पिता।
पिता छत्रछाया है,अपने पूरे परिवार की,
परवाह नहीं करता वह,किसी भी दीवार की
नियम भंग लेकिन,वह  कभी होने नहीं देता,
उसे परवाह होती है सदा,पिता के किरदार की।
पिता बनकर उसे,पिता के कर्तव्य याद आते हैं,
तब अपने पिता के नियम,उसे बहुत सुहाते हैं
तब बच्चों पर लगाई,सख्ती के बंधन वह  तोड़ देता है ,
बच्चे पिता के साथ तब, निश्चिंत मौज़ मनाते हैं।
पिता थोड़े कठोर,थोड़े नरम दिल भी होते हैं,
पिता, पिता होने का तब,दम भी तो भरते हैं
पिता बच्चों से,अनुशासन का पालन करवाता है,
बच्चे भोले मासूम पितृ-छाया में राज करते हैं।
पितृ-छाया,घने वट वृक्ष की भी छाया है,
फ़रमाते हैं जो बच्चे, पिता ने वही हुक्म बजाया है
‘गलती कोई करना नहीं’, के आधार पर ही तो,
बच्चों ने पितृ-छाया में,स्वतंत्र जीवन पाया है॥

                                                         #रवि रश्मि ‘अनुभूति’

परिचय : दिल्ली में जन्मी रवि रश्मि ‘अनुभूति’ ने एमए और बीएड की शिक्षा ली है तथा इंस्टीट्यूट आॅफ़ जर्नलिज्म(नई दिल्ली) सहित अंबाला छावनी से पत्रकारिता कोर्स भी किया है। आपको महाराष्ट्र राज्य हिन्दी साहित्य अकादमी पुरस्कार,पं. दीनदयाल पुरस्कार,मेलवीन पुरस्कार,पत्र लेखिका पुरस्कार,श्रेष्ठ काव्य एवं निबंध लेखन हेतु उत्तर भारतीय सर्वोदय मंडल के अतिरिक्त भारत जैन महामंडल योगदान संघ द्वारा भी पुरस्कृत-सम्मानित किया गया है। संपादन-लेखन से आपका गहरा नाता है।१९७१-७२ में पत्रिका का संपादन किया तो,देश के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में गीत,ग़ज़ल,कविताएँ, नाटक,लेख,विचार और समीक्षा आदि निरंतर प्रकाशित होती रही हैं। आपने दूरदर्शन के लिए (निर्देशित नाटक ‘जागे बालक सारे’ का प्रसारण)भी कार्य किया है। इसी केन्द्र पर काव्य पाठ भी कर चुकी हैं। साक्षात्कार सहित रेडियो श्रीलंका के कार्यक्रमों में कहानी ‘चाँदनी जो रूठ गई, ‘कविताओं की कीमत’ और ‘मुस्कुराहटें'(प्रथम पुरस्कार) तथा अन्य लेखों का प्रसारण भी आपके नाम है। समस्तीपुर से ‘साहित्य शिरोमणि’ और प्रतापगढ़ से ‘साहित्य श्री’ की उपाधि भी मिली है। अमेरिकन बायोग्राफिकल इंस्टीट्यूट द्वारा ‘वुमन आॅफ़ दी इयर’ की भी उपाधि मिली है। आपकी प्रकाशित पुस्तकों में प्राचीरों के पार तथा धुन प्रमुख है। आप गृहिणी के साथ ही अच्छी मंच संचालक और कई खेलों की बहुत अच्छी खिलाड़ी भी रही हैं।

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  1. कविता प्रकाशित करने हेतु हार्दिक धन्यवाद, अजय जी ।

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