सफरनामा
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हिंदी उर्दू की गंगाजमुनी धाराओं के बीच
कुछ बातें… कुछ यादें स्कूल और कॉलेज के दिनों की…
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8 वीं कक्षा के दौरान मेरी पहली कविता ‘तलाश’ विद्यालय की वार्षिक पत्रिका ‘अरुणिमा’ में छपी थी। उन दिनों मैं रक्सौल के हजारीमल उच्च विद्यालय का छात्र था। साहित्य मर्मज्ञ गुरुवर कन्हैया प्रसाद जी उस पत्रिका के संपादक थे। उस कविता को मित्रों ने भी सराहा और शिक्षकों ने भी। कुछ समय के लिए ऐसी चर्चा होने लगी मानो साइंस के एक छात्र ने हिंदी में कोई बड़ा कारनामा कर दिया हो।
लेकिन यह सच था कि साहित्य का वह बीज जो मन की कोमल भूमि पर अनायास गिरा 10 वीं कक्षा तक आते आते अंकुरित होने लगा। अंदर की लहरें जाने अनजाने तूफान में तब्दील होने लगीं। अमूमन हर रोज एक कविता इस कारखाने से तैयार होकर निकलने लगी। नतीजा यह निकला कि इंटर तक आते आते मेरी कविताओं के दो संग्रह ‘प्राणों के साज पर’ और ‘अंतर्बोध’ प्रकाशित हो गए।
शब्दों से खेलना तो मानो शौक बन गया था। हाँ शब्दों के सटीक मायने और उनके सटीक इस्तेमाल को लेकर एक द्वन्द्व भी साथ चलता रहता था।
एक रोज एक दिलचस्प वाकया हुआ…
एक गजल लिखते हुए उर्दू के कुछ लफ़्ज आपस में टकरा गए।
हालांकि उन दिनों अपनी रचनाओं में मय, मयकदा, मयकश, मयखाना जैसे लफ़्जों का मैं खूब इस्तेमाल किया करता था। उसी रौ में कहीं ‘मीना’ का भी इस्तेमाल कर डाला लेकिन फिर लगा कि कहीं अर्थ का अनर्थ न हो जाय।
विद्यालय में उर्दू के शिक्षक बदरूल हसन साहब थे जो हमारी कक्षा में समाज शास्त्र पढ़ाते थे।
उर्दू किताबों की उनकी एक दुकान भी थी। मुझे अच्छे विद्यार्थी के रूप में मानते भी बहुत थे और मेरे साहित्य प्रेम की खबर भी उन्हें थी।
इस जद्दोजहद से गुजरते हुए एक रोज मैंने उनसे हिम्मत करके पूछ ही डाला… ‘मीना’ का मतलब…उन्होंने मुस्कुराते हुए समझाने की कोशिश भी की…
साहित्य के लिए मेरी दीवानगी देखकर उन्हें खुशी तो होती थी लेकिन मेरी कमउम्री पर उन्हें अफ़सोस था…कविताओं के जरिये जो मैं कहना चाहता था उनके हिसाब से उसके लिए मेरी उम्र मुनासिब नहीं थी…
वे अपने अंदाज़ में मुस्कुराते हुए यह बताने की कोशिश भी करते थे कि क्या गजब का शौक पाल बैठे हो बरखुरदार…
मेरे लिए साहित्य की दुनिया बड़ी होने लगी थी। जाने माने लेखकों के साथ संपर्क बनने लगा था। समकालीन लेखक भी जुड़ने लगे थे।
उस उम्र में उर्दू लफ़्जों की नजाकत और नफासत को समझना इतना आसान नहीं था..इस बीच डा. हरिवंश राय बच्चन से खतोकिताबत का सिलसिला भी शुरू हुआ… मेरी कुछ पांडुलिपियों में उर्दू शब्दों के इस्तेमाल को देखकर उन्हें हैरानी हुई…फिर उन्होंने मुझे कुछ शायरों के कलाम पढ़ने की सलाह दी… कुछ प्रकाशन के नाम भी सुझाये जहां से गजलों के रचना विधान पर जानकारी मिल सके…लिखने के साथ साथ पढ़ने पर ज्यादा जोर दिया…यह नसीहत मेरे लिए कारगर साबित हुई…उनकी रहनुमाई में आगे का रास्ता आसान होता चला गया…
1984 में तीसरी किताब ‘अनुभूति दंश’ साठ गजलों के संग्रह के रूप में दुनिया के सामने आई जिसमें ज्यादातर उर्दू के उन्हीं लफ़्जों का मैंने इस्तेमाल किया जो हिंदी के साथ दूध में शक्कर की तरह घुलमिल गए हैं… साहित्य जगत में इस किताब को जिस रूप में स्वीकृति मिली… साहित्य मनीषियों ने इन गजलों को जो दर्ज़ा दिया…वह सब कुछ मेरे लिए अद्भुत और अप्रत्याशित था…
#डॉ. स्वयंभू शलभ
परिचय : डॉ. स्वयंभू शलभ का निवास बिहार राज्य के रक्सौल शहर में हैl आपकी जन्मतिथि-२ नवम्बर १९६३ तथा जन्म स्थान-रक्सौल (बिहार)है l शिक्षा एमएससी(फिजिक्स) तथा पीएच-डी. है l कार्यक्षेत्र-प्राध्यापक (भौतिक विज्ञान) हैं l शहर-रक्सौल राज्य-बिहार है l सामाजिक क्षेत्र में भारत नेपाल के इस सीमा क्षेत्र के सर्वांगीण विकास के लिए कई मुद्दे सरकार के सामने रखे,जिन पर प्रधानमंत्री एवं मुख्यमंत्री कार्यालय सहित विभिन्न मंत्रालयों ने संज्ञान लिया,संबंधित विभागों ने आवश्यक कदम उठाए हैं। आपकी विधा-कविता,गीत,ग़ज़ल,कहानी,लेख और संस्मरण है। ब्लॉग पर भी सक्रिय हैं l ‘प्राणों के साज पर’, ‘अंतर्बोध’, ‘श्रृंखला के खंड’ (कविता संग्रह) एवं ‘अनुभूति दंश’ (गजल संग्रह) प्रकाशित तथा ‘डॉ.हरिवंशराय बच्चन के 38 पत्र डॉ. शलभ के नाम’ (पत्र संग्रह) एवं ‘कोई एक आशियां’ (कहानी संग्रह) प्रकाशनाधीन हैं l कुछ पत्रिकाओं का संपादन भी किया है l भूटान में अखिल भारतीय ब्याहुत महासभा के अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन में विज्ञान और साहित्य की उपलब्धियों के लिए सम्मानित किए गए हैं। वार्षिक पत्रिका के प्रधान संपादक के रूप में उत्कृष्ट सेवा कार्य के लिए दिसम्बर में जगतगुरु वामाचार्य‘पीठाधीश पुरस्कार’ और सामाजिक क्षेत्र में उल्लेखनीय योगदान के लिए अखिल भारतीय वियाहुत कलवार महासभा द्वारा भी सम्मानित किए गए हैं तो नेपाल में दीर्घ सेवा पदक से भी सम्मानित हुए हैं l साहित्य के प्रभाव से सामाजिक परिवर्तन की दिशा में कई उल्लेखनीय कार्य किए हैं। आपके लेखन का उद्देश्य-जीवन का अध्ययन है। यह जिंदगी के दर्द,कड़वाहट और विषमताओं को समझने के साथ प्रेम,सौंदर्य और संवेदना है वहां तक पहुंचने का एक जरिया है।