राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के अ.भा. कार्यकारी मंडल की बैठक आजकल भोपाल में हो रही है। यहां गैर-हिंदीभाषी क्षेत्रों के प्रचारकों की विशेष बैठक बुलाई गई है। इस बैठक में सरसंघचालक मोहन भागवत इन प्रचारकों को ‘मातृभाषा अभियान’ चलाने की प्रेरणा देंगे,यानि प्राथमिक शाला के बच्चों को अंग्रेजी की चक्की में पिसने से बचाएंगे। देश के बच्चों की प्राथमिक शिक्षा मातृभाषाओं में हो,इस पर प्रचारक जोर देंगे। प्रचारक क्या जोर देंगे,कैसे जोर देंगे,वे क्या करेंगे,उनका कहना कौन सुनेगा? लोग अपने बच्चों को अंग्रेजी माध्यम के खर्चीले स्कूलों में क्यों भेजते हैं,यह सवाल मोहनजी को पहले खुद से पूछना चाहिए। उन्हें पता है कि इसका जवाब क्या है। आज भारत का गरीब-से-गरीब आदमी चाहता है कि,उसके बच्चे पढ़-लिखकर बड़ी-बड़ी नौकरियां करें। हमारे देश में सरकारी नौकरियों के लिए सबसे बड़ी और अनिवार्य योग्यता क्या है-अंग्रेजी भाषा! आपको अपनी नौकरी का हर गुर अच्छी तरह मालूम है,लेकिन अगर आप अंग्रेजी नहीं जानते तो वह नौकरी आपको नहीं मिलेगी। सरकारी ही नहीं,निजी नौकरियों में भी इसी की नकल चल पड़ी है। इसीलिए संघ-प्रचारकों के उपदेश चिकने घड़े पर से फिसल जाएंगे।
अतः मोहनजी अपना समय और शक्ति इस उपदेश-कथा में नष्ट नहीं करें। इसकी बजाय वे तीन काम करें। सबसे पहले सर्वज्ञजी से कहें कि,वे संसद में ऐसा कानून लाएं,जिससे देश में विदेशी भाषा के माध्यम की हर पढ़ाई पर प्रतिबंध लगे। सिर्फ प्राथमिक शिक्षा में ही नहीं,पीएचडी में भी। अब से ५० साल पहले मैंने अंतरराष्ट्रीय राजनीति में पीएचडी का शोध प्रबंध लिखकर (ज.नेहरु विवि में) भारतीय भाषाओं के बंद द्वार खोल दिए थे। इसका अर्थ यह नहीं कि,हम विदेशी भाषाएं न पढ़ें। स्वेच्छा से अनेक विदेशी भाषाएं पढ़ें और उनमें महारत हासिल करें। मैंने स्वयं रुसी,जर्मन और फारसी पढ़ी। अंग्रेजी तो मुझ पर बचपन से ही लदी हुई थी। स्वेच्छा से अंग्रेजी पढ़ने में कोई बुराई नहीं है। दूसरा काम सरकार यह करे कि,सरकारी नौकरियों की भर्ती-परीक्षा से अंग्रेजी की अनिवार्यता खत्म करे।
तीसरा काम,जो संघ के स्वयंसेवक करें,वह यह कि सरकार संघ की बात न माने तो,लाखों स्वयंसेवक सारे देश में अहिंसक सत्याग्रह करें,धरने दें,उपवास करें,प्रदर्शन करें। वे अंग्रेजी माध्यम की शालाओं को बंद करवाएं,सरकारी दफ्तरों और नेताओं की गर्दन नापें और देश के सारे काम-काज में स्वभाषाओं को प्रतिष्ठित करें। अब से साढ़े तीन साल पहले मैंने सब स्वभाषा में हस्ताक्षर करें,ऐसा अभियान चलाया था। मोहनजी ने बेंगलूरु में संघ के विराट सम्मेलन में समस्त स्वयंसेवकों से मेरा नाम लेकर संकल्प करवाया था। मैं उनका आभारी हूं। उस अभियान को आगे बढ़ाना है। कम-से-कम दस करोड़ लोगों के दस्तखत अंग्रेजी से बदलवाकर हिंदी तथा अन्य भारतीय भाषाओं में करवाना है। यह छोटी-सी लेकिन महत्वपूर्ण शुरुआत है। कम-से-कम इतना तो करें।
(आभार-वैश्विक हिन्दी सम्मेलन,मुंबई)
#डॉ.वेद प्रताप वैदिक