साधना कृष्ण

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sadhana
ऋतु बसंत से अलहदा
होता है मन का बसंत,
शाख के हरिआते पत्ते
गुंजित कलियाँ कहती,
देखो …….
आनंदमय हुआ जग सारा
मन के कोने में भूली बिसरी,
अदना-सी स्मृति आकर
कानों में कहती ……
ऐ देख ….
मैं    आ     गई।
अचानक  बियाबान में
मुस्कुरा उठा हो हरसिंगार
बादलों की रिमझिम ज्यों,
गा उठा  हो   थार प्रदेश।
बज उठी हो  शहनाई,
कहीं बरसों से उदास
बिसुरती  आँगन देहरी,
बजने लगी हो पाजेब
किसी वीरान कोने में।
बाहर सब तटस्थ रह
भीतर  हो जाता अस्त,
दुख का सूरज ……
निकल आता है गोल
लुभावना-सा चाँद,
मन  गा  उठता  है
जीवन  के गीत…..
आज जीना  जरुरी है॥
#साधना कृष्ण
परिचय : साधना कृष्ण की जन्मतिथि-३ अक्टूबर और जन्म स्थान-फुलाढ (मुजफ्फरपुर) है। आपने स्नातकोत्तर सहित विधि में स्नातक की शिक्षा प्राप्त की है और कार्यक्षेत्र-अध्यापन है। सामाजिक क्षेत्र में महिला उत्थान हेतु आप कार्यरत हैं। गीत,ग़ज़ल,मुक्तक,लेख ,दोहा,हाईकु,कहानी,लघुकथा इत्यादि लिखती हैं। रचनाओं का विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशन हुआ है। लेख, कविता,व्यंग्य और दो साझा संग्रह भी प्रकाशित हैं। आप छात्राओं के लिए आदर्श हैं। आपके लेखन का उद्देश्य- स्वान्तः सुखाय और समाज सुधारने की आकांक्षा है।

matruadmin

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