मैंने एक शख्स देखा
बड़ा ही भोला–भाला,
वही आंख
वही नाक
वही नयन नक्श,
मैंने वही देखा जो दिखाई दिया
एक नेक इन्सान देखा।
अंदर झांककर देखा
वो बड़ा ही भद्दा–सा शैतान था,
जो हर किसी को
धोखेबाज–फरेबी कहता था
सिवाय अपने;
मैंने अपने में वो शैतान देखा
स्वार्थ देखा।
हैं हम महापापी
चेहरे पे मुखौटा लगाकर रहते हैं,
दूसरों को प्रवचन देते
ढोंगीराम देखा ll
परिचय : राजू कुमार महतो साहित्यिक नाम ‘किंग मस्ताना’ के तौर पर रचना लिखते हैं। आपकी मातृभाषा हिन्दी और भोजपुरी है। १९९० में जन्मे राजू कुमार का निवास दिल्ली में है। आपने हिन्दी में बी.ए.तथा एम.ए. के साथ ही विवि अनुदान आयोग से ‘नेट (हिन्दी) भी उत्तीर्ण की है। महफिल-ए-गजल साहित्य समागम सहित अन्य संस्थाओं से भी से सम्मान-पत्र पाए हैं। कुछ पत्र-पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित हैं।