मेरे दिल की एक आरजू,
तेरे दिल में बस जाऊं मैं।
तेरे दिल में बस जाऊं मैं…l
भेष बदलकर आता रहूँ मैं,
हर उत्सव में शामिल होने।
देकर अपनी सारी खुशियाँ
तेरा घर महकाऊं मैं…ll
पतझड़ का मौसम आए तो,
छाया बनकर छा जाऊं मैं।
सूनापन गर लगे तुझे तो,
ग़ज़लें बनकर आँधी जाऊं मैं।
मेरे दिल की एक आरजू…ll
तेरे दिल की हर दीवार पर,
तस्वीरें खूब सजाऊं मैं।
आँगन में तेरे आकर,
रंगोली नेक बनाऊं मैं ll
बाहुपाश में तुझे झुलाकर,
तेरा दिल बहलाऊं मैं।
प्रीत करूँ तुझसे ऐसी,
प्रियतम तेरा कहलाऊं मैं ll
मेरे दिल की एक आरजू…l
रंग-बिरंगी कलियाँ सीकर,
प्रीत सेज की सजाऊं मैं।
कंचन कामुकमय मूरत को,
निज नयनों में बसाऊं मैं ll
मादकता लहराते आँचल की,
निज साँसों में बसाऊं मैं।
तुझे नजर लगे न इस दुनिया की,
`मनु` काजल बनकर सज जाऊं मैं l
मेरे दिल की एक आरजू…ll
झीने-झीने पट में जब तू,
हौले-हौले मुस्काती है।
अंग-प्रत्यंग तेरा कम्पन करता,
आलिंगन में जब आती है।
मुस्कान सजाए तेरे लबों की,
एक तराना बन जाऊं मैं…ll
देकर अपनी सांसें तुझको,
जीने का बहाना बन जाऊं मैं…
मेरे दिल की एक आरजू
तेरे दिल में बस जाऊं मैं…ll
#मनोज कुमार सामरिया ‘मनु'
परिचय : मनोज कुमार सामरिया `मनु` का जन्म १९८५ में लिसाड़िया( सीकर) में हुआ हैl आप जयपुर के मुरलीपुरा में रहते हैंl बीएड के साथ ही स्नातकोत्तर (हिन्दी साहित्य ) तथा `नेट`(हिन्दी साहित्य) भी किया हुआ हैl करीब सात वर्ष से हिन्दी साहित्य के शिक्षक के रूप में कार्यरत हैं और मंच संचालन भी करते हैंl लगातार कविता लेखन के साथ ही सामाजिक सरोकारों से जुड़े लेख,वीर रस एंव श्रृंगार रस प्रधान रचनाओं का लेखन भी करते हैंl आपकी रचनाएं कई माध्यम में प्रकाशित होती रहती हैं।