जाम तो छलक रहा…

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prabhat dube
जाम तो छलक रहा है,जिसे मैं पी तो रहा हूँ।
जिन्दगी कड़वाहट है,जिसे मैं जी तो रहा हूँ॥
जाम तो छलक रहा है, जिसे मैं पी तो रहा हूँ।
जिन्दगी जाम बने तो,मजा कुछ और है यारों।
तड़प जाए जो जिन्दगी,नशा कुछ और है यारों।
मैखाने में जाओ, जाम तुम छलकाओगे।
जिन्दगी छलक गई तो,सजा कुछ और है यारों॥
जाम तो गम है भुलाता , जिन्दगी देती यारों।
दोनों में मजा अलग है,मुझे अब सँभालो यारों॥
जाम तो छलक रहा है,जिसे मैं पी तो रहा हूँ।
जिन्दगी कड़वाहट है,जिसे मैं जी तो रहा हूँ॥
जाम जब चढ़ जाए तो,दुनिया रंगीन है दिखती।
जिन्दगी चढ़ जाए तो दुनिया संगीन है दिखती।
जाम के बिना जिन्दगी, सब तो विहीन है यारों॥
जाम तो छलक रहा है,जिसे मैं पी तो रहा हूँ।
जिन्दगी कड़वाहट है,जिसे मैं जी तो रहा हूँ॥
                                                                    #प्रभात कुमार दुबे 

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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