विधा- हाइकु…
घर से चला
अपनों की चाह में
मुसाफिर हूँ।
निकल चला
सपनों की चाह में
मुसाफिर हूँ।
चल पड़ा हूँ
घर से भटकता
दर-बदर।
तलाशता हूँ
यहाँ से वहाँ तुम्हें
मुसाफिर हूँ।
इस कदर
चलता रहता हूँ
दर-बदर।
धीरे-धीरे ही
चलता रहता हूँ
ये मेरा काम।
न मेरा काम
अपना कोई धाम
नहीं है कोई।
चलना ही है
न देखता समय
न दिन-रात।
भटकता हूँ
इधर से उधर
कहाँ किधर ?
यहाँ से वहाँ
घूमता रहता हूँ
मंजिल कहाँ ?
न जाने कहाँ
होती सुबह-शाम
मुसाफिर हूँ।
आ पहुंचा हूँ
मंजिल के करीब
पीछे क्यूं जाऊँ।
#गणेश मादुलकर
परिचय: गणेश मादुलकर का साहित्यिक उपनाम-मुसाफ़िर है। इनकी जन्मतिथि -५ सितम्बर १९९७ तथा जन्म स्थान-गांव ग्राम बम्हनगावं(मध्यप्रदेश)है। शहर हरदा में बसे हुए गणेश मादुलकर अभी विद्यार्थी काल में हैं। यह किसी विशेष विधा की अपेक्षा सब लिखते हैं। आपके दो प्रकाशन आ चुके हैं,जिसमें एक साझा संग्रह है। इनके लेखन का उद्देश्य सामाजिक रूढ़िवादिता पर कटाक्ष प्रहार के साथ ही प्रकृति चित्रण,देश-काल, वातावरण एवं अन्य विषय पर भी लेखन जारी है।