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गुल की मुस्कुराहट पल दो पल की
शाख़ से उसे जुदा होना है
अपने नशेमन से बिछड़ के
किसी के अरमान सँजोना है।
ज़ुल्फ़ों पे सज के तो
कभी दैर-ओ-हरम में
करना है बयाँ पैग़ाम
यही है करम में।
तड़प-ए-फ़ुर्क़त भूल के
महकना है ग़म में भी
ख़ुशी में भी
बस… दूसरों के लिए।
#डॉ. रूपेश जैन ‘राहत’
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