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सुनो न मेरी प्यारी माँ,
मुझे दूर न तुझसे जाना।
कितना प्यारा था वो बचपन,
जब नींद को गोद और सिर पर हाथ मिल जाता था,
सब कुछ भुलाकर सीने से तेरे लग जाता था,
माँ आगे बढ़ने की है चाहत पर,
मुझे दूर न तुझसे जाना,
माँ तूने दिया बचपन संवार,
पिता ने बेटा ही मुझको माना॥
सुनो न मेरी प्यारी माँ,
मुझे दूर न तुझसे जाना।
सुबह सबेरे माँ जब तुम इन आँखों को दिख जाती थी,
जीवन में एक उम्मीद की किरण नजर आ जाती थी,
दूर हुआ जब तुझसे माँ,
राह नजर नहीं आती थी,
माँ तूने दिया जीवन संवार,
पिता ने कुल का दीपक माना॥
सुनो न मेरी प्यारी माँ,
मुझे दूर न तुझसे जाना॥
#शरद कौरव ‘गम्भीर’
परिचय: शरद कौरव ‘गम्भीर’ की जन्मतिथि १७ जनवरी १९९८ और जन्म स्थान- गाडरवाड़ा है। मध्यप्रदेश के इसी शहर में आपका निवास है। आपका कार्यक्षेत्र शिक्षा है और कृषि से स्नातक जारी है। पसंदीदा विधा-हास्य है। ब्लॉग पर भी लेखन करते हैं और रचनाएँ छपी भी हैं। संस्था तिरोडी द्वारा आपको सम्मानित किया गया है। लेखन का उद्देश्य-साहित्य का सृजन एवं हिन्दी लेखन में प्रमुख भागीदारी है।
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Its very heart touching poem.. especially for those who are living away from there home nice bhaiya
बहुत सुंदर पंक्तियों से अलंकृत किया माँ को
बहुत बहुत साधुबाद