जीत

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sarla
बाइस अगस्त
सत्रह का दिन,
सखी ऐतिहासिक
व नारीत्व का
रक्षक हो गया।
पिसती हुई
एक आबादी की
जिन्दगी सँवर गई।
पुरातन पुरुषवादी
संकीर्ण एक सोच
से आज नारी
मुक्त हो गई।
ईद का त्योहार आज
सब हैं मना रहीं।
उनके संग हम भी
दिवाली मना रहे।
नारी तो है नारी
न जाति न वर्ग है।
पिसती रहीं समाज में
समानता न पा सकीं।
मन मयूर नाच रहा,
उनका इस जीत पर।
न केवल मुस्लिम वर्ग,
नारी वर्ग की ये जीत है॥                                                                  #डॉ.सरला सिंह

परिचय : डॉ.सरला सिंह का जन्म सुल्तानपुर (उ.प्र.) में हुआ है पर कर्म स्थान दिल्ली है।इलाहबाद बोर्ड से मैट्रिक और इंटर मीडिएट करने के बाद आपने बीए.,एमए.(हिन्दी-इलाहाबाद विवि) और बीएड (पूर्वांचल विवि, उ.प्र.) भी किया है। आप वर्तमान में वरिष्ठ अध्यापिका (हिन्दी) के तौर पर राजकीय उच्च मा.विद्यालय दिल्ली में हैं। 22 वर्षों से शिक्षण कार्य करने वाली डॉ.सरला सिंह लेखन कार्य में लगभग 1 वर्ष से ही हैं,पर 2 पुस्तकें प्रकाशित हो गई हैं। कविता व कहानी विधा में सक्रिय होने से देश भर के विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में लेख व कहानियां प्रकाशित होती हैं। काव्य संग्रह (जीवन-पथ),दो सांझा काव्य संग्रह(काव्य-कलश एवं नव काव्यांजलि) आदि पर कार्य जारी है। अनुराधा प्रकाशन(दिल्ली) द्वारा ‘साहित्य सम्मान’ से सम्मानित की जा चुकी हैं।

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