सदियों से उसे समृद्ध बनाने वाली,प्राण फूंकने वाली,सदैव विकास पथ पर चोली-दामन सा साथ निभाने वाली आंचलिक बोलियों को इतनी निर्ममता से उससे अलग करने का विचार भी मन मे ना लाएंँ। भारत विभिन्नताओं का देश है,यदि उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक सरसरी दृष्टि से इसका सर्वेक्षण किया जाए तो भौगोलिक,सांस्कृतिक, धार्मिक, क्षेत्रिय,भाषायिक वैभिन्नता देखने को मिलती है,परन्तु इतनी विविधताओं को समेटे भारत की माटी पूरे विश्व को अवाक् करने वाली अदभुत एकता की स्वामिनी है।इसकी यह विशिष्टता एक ऐसा इन्द्रधनुषी रंगों का चक्र है,जब यह घूमता है तो इसके सभी रंग एक दूसरे मे समाहित हो एकरंगी हो जाते हैं। ऐसी अक्षुण्य एवं विलक्षण ‘अनेकता में एकता ‘ का गुण शायद अन्यत्र कहीं देखने को मिले।
भारत का हर नागरिक अपनी मातृभूमि की इस विलक्षण प्रतिभा को महसूस कर गौरवांवित होता है,परन्तु कष्ट होता है जब अपने ही कुछ भाई-बंधु निम्न कोटि के राजनीतिक स्वार्थों के वशीभूत हो देश की अक्षुण्ता को छिन्न-भिन्न करने का सतत् प्रयास समय समय पर और अलग-अलग तरीकों से करते रहते हैं। आठवीं अनुसूची में भोजपुरी और राजस्थानी बोलियों को सम्मिलित कर भाषा का दर्जा दिलाने का प्रयास ऐसी ही ‘भाषायिक राजनीति’ का उदाहरण जान पड़ता है। ‘हिन्दी , हिन्दोस्तान की पहचान है’,जितना उदार ‘मेरे भारत’ का ह्दय, उतनी ही उदार इसकी भाषा ‘ हिन्दी’ है। भोजपुरी, ब्रज,अवधी,पूर्वी हिन्दी,कुमायुनी हिन्दी तथा पूर्वी हिन्दी आदि जितनी भी अन्य आंचलिक एंव क्षेत्रिय बोलियां हैं,सब मिलकर हिन्दी का शरीर निर्माण करती हैं। यह बोलियां हिन्दी को रक्त संचार करने वाली धमनियां हैं,हिन्दी साहित्य का इतिहास उठाकर देखा जाए तो, वीरगाथा काल से आधुनिक काल तक के विकास में यह बोलियां निरन्तर ‘हिन्दी’ को पोषक तत्व प्रदान कर सुन्दर,सुगठित एंव विस्तृत रूप प्रदान करती रहीं हैं और भाषायिक राजनीति परस्त अपने निहित स्वार्थों की पूर्ति हेतु इस पर कुठाराघात कर इन्हें हिन्दी से अलग करना चाहते हैं। क्या आपने कभी सोचा कि,किसी एक रक्त संचार करने वाली धमनी को काटकर अलग कर देने के दूरगामी परिणाम…?? क्या वास्तव में एक- दूसरे से अलग होकर किसी एक का अस्तित्व विस्तार पा सकेगा ? जी नहीं,कदापि नहीं। हैरानी होती है ऐसे लोगों की विवेकहीन और संक्षिप्त सोच पर और कष्ट भी।
आठवीं अनुसूची में हिन्दी के साथ 21 अन्य भाषाएँ भी शामिल हैं, जिनका अपना एक ‘मानक व्याकरण’ है, ‘लिपि’ है और प्रान्त में उन्हें बोलने वाला एक विशाल जनसमुदाय भी है, परन्तु भोजपुरी बोली की ऐसी निजस्व कोई लिपि, व्याकरण अथवा साहित्य नहीं है,यह तो मात्र एक ‘घरवा बोल-चाल’ की भाषा है।इसको ‘राजभाषा’ का दर्जा दिलवाने की बात बेहद बचकानी है। किसी राज्य के सरकारी कार्यालयों में राजभाषा के रूप में व्यवहार किए जाने के लिए जिस स्तर की समृद्ध,सुदृढ़,परिष्कृत और सम्पन्न भाषा की आवश्यकता होती है,ऐसे गुण ‘भोजपुरी’ बोली में नहीं हैं।
जिस तरह आज भोजपुरी को सूची में शामिल करने की मांग की जा रही है, कल कोई अन्य आंचलिक बोली सिर उठाती दिखेगी, और इस तरह इन बोलियों से ‘खाद’, माटी,पानी और ऊर्जा प्राप्त कर स्वस्थ और सुदृढ़ वृक्ष के रूप में पल्लवित हो रही हिन्दी मुरझाकर सूख जाएगी। यह प्रयास एक भाषा के अस्तित्व को चोट पहुँचा कर कमजोर करना होगा,जिसके परिणाम स्वरूप हिन्दी कभी भी ‘अंग्रेजी’ भाषा के समानान्तर अपना स्थान नहीं बना पाएगी। अंग्रेजी भाषा का बढ़ता प्रभाव और हर क्षेत्र मे पैर पसारता इसका वर्चस्व ‘हिन्दी के हिन्दोस्तान पर ग्रहण की भांति सदैव के लिए लग जाएगा।
देश के साहित्यकार, माननीय प्रधानमंत्री,समस्त हिन्दी प्रेमी जहाँ हिन्दी को केवल राष्ट्रीय ही नहीं, अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर जिस प्रतिष्ठा और मर्यादापूर्ण स्थान दिलाने के लिए प्रयासरत हैं,वहीं कुछ स्वार्थपरक लोग हिन्दी को अपनी ही रक्तसम्बन्धियों से अलग कर भावनात्मक,रचनात्मक एंव शारीरिक रूप से कमजोर और छिन्न-भिन्न करने की सोच को दिशा देना चाह रहे हैं।
एक भाषा का वेदनापूर्ण निवेदन है कि,सदियों से उसे समृद्ध बनाने वाली, प्राण फूंकने वाली,सदैव विकास पथ पर चोली-दामन-सा साथ निभाने वाली आंचलिक बोलियों को इतनी निर्ममता से उससे अलग करने का विचार भी मन में न लाएं , वरन एकजुट होकर भाषा का समग्र विकास सोचें।छोटे-छोटे प्रान्तीय एवं क्षेत्रिय स्वार्थों से ऊपर उठकर राष्ट्रीय एंव अन्तर्राष्टीय स्तर पर ‘हिन्दी’ को अपनी अमिट पहचान बनाने मे आपना योगदान दें।
जय हिन्द, जय हिन्दी!!
#लिली मित्रा
परिचय : इलाहाबाद विश्वविद्यालय से स्नातकोत्तर करने वाली श्रीमती लिली मित्रा हिन्दी भाषा के प्रति स्वाभाविक आकर्षण रखती हैं। इसी वजह से इन्हें ब्लॉगिंग करने की प्रेरणा मिली है। इनके अनुसार भावनाओं की अभिव्यक्ति साहित्य एवं नृत्य के माध्यम से करने का यह आरंभिक सिलसिला है। इनकी रुचि नृत्य,लेखन बेकिंग और साहित्य पाठन विधा में भी है। कुछ माह पहले ही लेखन शुरू करने वाली श्रीमती मित्रा गृहिणि होकर बस शौक से लिखती हैं ,न कि पेशेवर लेखक हैं।
सार्थक एवं संतुलित विचार। लेख ने भाषा और बोली पर नए सिरे से सोचने के लिए प्रोत्साहित किया है। वेदना की अनुभूति भी हुई।
सार्थक एवं प्रेरणापूर्ण लेख।