ढूंढ रहा हूँ अपनी कविताओं को,
भाड़े के कमरे के कोने–कोने में..
जहाँ कमरे के बाहर खोले गए,
चप्पलों के संख्या के हिसाब से..
बढ़ जाता है किराया हर माह,
ढूंढ रहा हूँ अपनी कविताओं को..
चावल,दाल और आटे के खाली कनस्तरों में,
बेटी के दूध की बोतल में..
जिसमें तीन चौथाई पानी मिला है,
ढूंढ रहा हूँ अपनी कविताओं को..l
पत्नी की बेबस आँखों में,
माँ की कराहों में..
`साहब` की गुर्राहटों में,
परिजनों के रहमहीन उद्गारों में..
ढूंढ रहा हूँ अपनी कविताओं को,
कुछ भूले–बिसरे दोस्तों के साथ
गुजारे उन खुबसूरत पलों में,
(जो गलती से भी मयस्सर नहीं होते अब एक पल के लिए भी)
अभी–अभी तो दिखी थी कविताएँ..
जब सोच रहा था उसकी बातें,
जो कभी मेरी हर ख़ुशी की वजह हुआ करती थी..
उसकी निश्छल मुस्कुराहटों में,
गुम हो जाते थे हर गम और दुःख की छाया भी..
पर बदले हालात में बदली उसकी मुस्कुराहटों में,
गुम हो गई मेरी कविताएँ फिर से..
ढूंढ रहा हूँ अपनी कविताएँ,
उसकी यादों के समंदर में।
#मनोरंजन कुमार तिवारी
परिचय: मनोरंजन कुमार तिवारी बिहार राज्य के जिला बक्सर स्थित गाँव भद्वर के मूल रहवासी हैंl वर्तमान में गुडगाँव में रह रहे हैंl लिखना आपका शौक हैl