ये क्या कहा,ये कैसी हैरानी की बात की,
सहराओं के प्यासों से क्यूँ पानी की बात की।
मिलता रहा सुकून मुझे उसके शानो पर,
फिर इश्क मोहब्बत के मानी की बात की।
एहसास कभी उसके भुलाने को जो चले,
हर शख्स से फिर उसकी निशानी की बात की।
लैला नहीं,सोहनी नहीं,न हीर की कही,
अपनी गज़ल में अपनी दीवानी की बात की।
बगिया के सारे फूल भी हैरान हो गए,
भँवरों ने मिल के उसकी जवानी की बात की।
तुझको ही पार करना है ये सारे मरहले,
दरिया से कभी किसने रवानी की बात की ?
मेरी हजार गलतियाँ वो माफ कर गई,
माँ ने फिर भी मुझपे गुमानी की बात की।
दुश्मन के घर फूँके उन्होंने खेल जान पर,
गद्दारों ने सबूत ओ निशानी की बात की।
घरों से जो उठने लगा…बूढ़ो का आसरा,
बच्चों से किसने राजा की,रानी की बात की।
रक्खा नहीं हिसाब किसी दर्द का कभी,
जो बात भी चली तो कहानी की बात की।
मौसम के धूप, आब सभी दरगुज़र किए,
यारों से हमने प्रीत सुहानी की बात की॥
#हेमंत बोर्डिया
परिचय: हेमंत बोर्डिया मध्यप्रदेश के खरगोन जिले के धामनोद से हैं। आपकी जन्मतिथि- २८ जून १९७६ एवं जन्म स्थान-खरगोन है। विज्ञान में स्नातक श्री बोर्डिया का कार्यक्षेत्र-विपणन प्रबंधक(रियल एस्टेट)है। लेखन में विधा -ग़ज़ल और गीत है। आपकी लेखनी का उद्देश्य समाज से द्वेष, द्वंद्व, छल और अमानवीयता जैसी बुराइयों को इंगित करना है। माध्यम प्रभावी हो और असर अंदर तक पहुंचे,तभी इलाज संभव होता है,चाहे इंजेक्शन हो या विचार।
Nice