मित्रता….

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purnima rai
नहीं जाने दूँगा
अब कहीं ओर!
यूँ ही पकड़ के रखूँगा
हाथों में हाथ।
ओ मेरे चितचोर,
तुम ही तो लाते हो
सदैव बादल घनघोर॥
सुबह,दोपहर और साँझ
तुम्हारे साथ ही खिलता
मेरे मन का मोर॥
गहन रहस्य
प्रकृति का बता दूँ,
तेरी हरीतिमा से मैं
आँचल भू का सजा लूँ।
ओढ़ लूँ तेरा सौंदर्य
अपनी रग-रग में,
नैसर्गिक छटा
से मन धवल बना लूँ।
कसकर जकड़ लेना
अपने आगोश में,
कहीं मेरी कामुकता,लोलुपता
भंग न करे तेरी शालीनता,
तेरे सौंदर्य को।
इससे पहले आ ज़रा,
निर्मलता और पवित्रता
के आलोक में
फैला दे अपने विस्तृत
स्वरूप को।
नगण्य मनुज व उसकी तुच्छ सोच
एवं क्षणभंगुर जीवन का
पर्दाफाश करके
बता दे —-
चिरकाल तक अमर अजर है–
पेड़ और उसकी मित्रता ,
मानवता से,
मानवीय जाति से
और
इंसानियत से॥

                                                                                #डॉ.पूर्णिमा राय

परिचय: डॉ.पूर्णिमा राय साहित्यिक गतिविधियों से सक्रियता से जुड़ी हुई हैं। आपका बसेरा अमृतसर में घुमान रोड के मेहता चौंक में है।

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