साँवरे बदरा बरसन लागे,
प्रेम की बतियाँ करनन लागे।
पुलक-पुलक देखो नाच रही वसुधा,
मनवा से उड़ गई आतप की क्षुधा,
साँवरे बदरा बरसन लागे।
दादुर मोर पपीहा मिल बोले,
कोयलिया काली कुहुकन लागे,
साँवरे बदरा बरसन लागे।
ठुमक-ठुमक के पवन चलत है,
महक-महक मन मगन करत है
जियरा मोरा अब तो बहकन लागे,
साँवरे बदरा बरसन लागे।
अँखियन से मोतियाँ लुढ़क गई,
पिय की याद चुपके से आय गई
बलम दरसन को हिय तरसन लागे,
साँवरे बदरा बरसन लागे।
साँवरे बदरा बरसन लागे..
प्रेम की बतियाँ करनन लागे॥
परिचय : १९८९ में जन्मी गुंजन गुप्ता ने कम समय में ही अच्छी लेखनी कायम की है। आप प्रतापगढ़ (उ.प्र) की निवासी हैं। आपकी शिक्षा एमए द्वय (हिन्दी,समाजशास्त्र), बीएड और यूजीसी ‘नेट’ हिन्दी त्रय है। प्रकाशित साहित्य में साझा काव्य संग्रह-जीवन्त हस्ताक्षर,काव्य अमृत, कवियों की मधुशाला है। कई पत्र-पत्रिकाओं में आपकी रचनाएँ प्रकाशित होती हैं। आपके प्रकाशाधीन साहित्य में समवेत संकलन-नारी काव्य सागर,भारत के श्रेष्ठ कवि-कवियित्रियां और बूँद-बूँद रक्त हैं। समवेत कहानी संग्रह-मधुबन भी आपके खाते में है तो,अमृत सम्मान एवं साहित्य सोम सम्मान भी आपको मिला है।