बेड़ियां…रिश्तों की

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आज रमेश और सुनीता के घर एक और फूल खिलने वाला था,और बाबा और दादी की खुशी का कोई ठिकाना नहीं था। सबको यकीन था कि इस बार हमारे घर में बेटा ही होगा।
सुनीता के पास इससे पहले ही एक बेटी थी ‘महक’। बहुत ही प्यारी(परंतु उससे प्यार करने वाली सिर्फ उसकी मां थी)थी।
रमेश के पिताजी जल्दी-जल्दी तैयार होकर बाजार से ढेर सारी मिठाई एवं ढेर सारे खिलौने लेकर आ गए।
उन्होंने पूरे गांव में बांटना शुरु कर दिया,मानो जैसे उनके सपने पूरे हो रहे हों। रास्ते में जो भी मिलता उसे मिठाई का एक डब्बा तुरंत पकड़ा देते,आखिर डब्बा दे क्यों न,उनके घर पोता जो होने वाला था।
पूरे गांव में जोर-जोर से चिल्लाते-मैं अपने पोते को कंधे पर उठाकर मेले को ले जाऊंगा,उसके लिए ढेर सारी मिठाइयां खरीदूंगा..उसे हमेशा अपने पास रखूँगा,उसे हर रोज मैं ही नहलाऊंगा। उसी समय रमेश ने कहा-पापा,जब सारे काम आप ही कर लोगे तो फिर मैं क्या करुंगा?
पिताजी ने कहा-जब तू छोटा था तो तेरे बाबा तुझे कंधे पर बैठा कर ले जाया करते थे और मुझे तुझे छूने भी नहीं दिया
करते थे,पर आज तो मेरी बारी है। मैं अपने पोते को खूब प्यार करुंगा।
तो इधर उसकी दादी तो घर-घर जाकर अपनी सहेलियों को बुलाने लगी और कहा कि-जब मेरे घर पोता होगा
तो अच्छे-अच्छे सोहर सुनाना।
आज परिवार में खुशियों का कोई ठिकाना नहीं था,कोई एक गिलास पानी भी मांग लेता तो उसे मिठाइयों के साथ ही पानी पिलाया जाता ,और यह सब हो रहा था सिर्फ एक पोते के लिए..जिसे पूरा परिवार अपनी गोद में खिलाना चाहता था..उसे प्यार करना चाहता है ,उसे पढ़ा-लिखाकर डॉक्टर बनाना चाहता है।
रमेश कहता है कि,-मैं अपने बच्चे को पूरी खुशियां दूंगा,वह हर एक सुविधा उसे दूंगा जो खासकर बड़े लोग अपने बच्चों को देते हैं।
आखिरकार वह समय आ ही गया,जब सुनीता का दर्द बढ़ गया और आखिरकार उसे एक अस्पताल में ले जाया गया। कुछ ही देर बाद उसके घर लक्ष्मी((बेटी ने जन्म लिया)आई।
‘लक्ष्मी आई है……..’  नर्स के मुख से (बेटी) का नाम सुन-सुनकर बाबा,दादी,पापा और साथ में खड़े रिश्तेदार सबके होश उड़ गए,और सभी के मुंह खुले के खुले रह गए।
आखिर उस नर्स ने कहा ही क्या था..कि तुम्हारे आंगन में एक नन्हीं-सी चिरैया आ चुकी है।
बस इतना ही ना और उन्हें लगा जैसे किसी ने उनकी कटी उंगली पर नमक छिड़क दिया हो।
पूरे परिवार में मातम छाया हुआ था,परंतु वहाँ खुश थे कुछ लोग…एक वो जिसने उस बच्ची को अपनी गर्भ में नौ महीनेे रखकर,कई पीड़ाओं को सहन करके इस धरती पर जन्म दिया था..वो थी उसकी माँ…। वहां खुश था वो डॉक्टर और नर्स जिन्हें बेटे-बेटियों में कोई फर्क नहीं दिखता था।
आखिरकार बाबा,दादी और पिताजी के सपने तो चकनाचूर हो गए थे, होते भी क्यों न..उन्हें तो एक पोता चाहिए था और हो गई एक पोती…और वह इसी कारण भगवान को बार-बार कोसे जा रहे थे… हर बार उनका यही कहना था कि,भगवान ने हमारे साथ गलत किया। कम-से-कम एक पोता तो दे देता
और रमेश की माँ रमेश की पत्नी को बार-बार कोसे जा रही थी कि,कलंकिनी हमें एक पोता तक न दे सकी।
पास खड़ी ७ साल की महक यह सब सुन रही थी।
आखिरकार बाबा ने एक बड़ा फैसला लिया और रमेश को बुलाकर उसे कहा कि,इसे ले जाकर कहीं छोड़ दो तुम।
आखिर इस महंगाई में हम दो बेटियों का पालन कैसे कर सकते हैं।
और आखिर कठोर बाप का वह ह्रदय कैसे मान गया..?
अभी-अभी तो उसने इस धरती पर आँखें खोली है,अभी तो उसने अपनी मां से बात भी नहीं की है।
धीरे-धीरे शाम होती गई और सूरज ढल गया। अर्द्धरात्रि को पत्नी के पास जाकर देखा कि,पत्नी सुनीता उस नन्हीं चिरैया को स्तनपान करा रही थी।
रमेश ने कहा कि-आज तुमने मेरी इज्जत नीलाम कर दी,क्या तुम एक बेटा नहीं दे सकती थी,जो हमारे वंश को आगे बढ़ाए।
सुनीता यह सब कुछ चुपचाप सुन रही थी। सुनती भी ना,तो क्या करती क्योंकि, वो बंधी थी ‘रिश्तों की बेड़ियों से’..
रमेश ने कहा-पापा का आदेश है कि,हमें बेटियां नहीं चाहिए, इसीलिए इसे जाकर छोड़ आओ किसी मंदिर की चौखट पे..।
इतना सुनते ही सुनीता ने उस चिरैया को अपने सीने से लगा लिया और प्यार करने लगी।
उसकी आंखों से गिर रही वो पानी की बूंदें चिल्ला-चिल्लाकर कह रही थी कि,वह अपनी बेटी को नहीं खोना चाहती है।
एक तरफ सुनीता का परिवार जो रो रहा था, इसलिए कि उनके घर बेटा न होकर एक बेटी ने जन्म लिया..तो एक तरफ उसकी बेटी महक जो सहमी-सहमी अपनी माँ की आंखों के आंसू पोंछ रही थी और बार-बार पूछ रही थी- मां तुम रो क्यों रही हो?
एक तरफ जिसने अभी-अभी अपनी आंखें खोली थी,उसे क्या पता था कि उसका परिवार उसे कचरे के डब्बे में फेंकना चाहता है..और यह सब देख रहा था वह डॉक्टर………………………।
                                                                        #विक्रांतमणि त्रिपाठी
परिचय : विक्रांतमणि त्रिपाठी एक लेखक के रुप में सामाजिक समस्याओं को उकेरते हैं,ताकि आमजन उस पर सोचेंं। उत्तरप्रदेश के जिला-सिद्धार्थनगर में ग्राम मधुकरपुर में रहते हैं। आपने एम.ए.(भूगोल)किया है और वर्तमान में एमएसडब्ल्यू की पढ़ाई जारी है। आप एक एनजीओ में कार्यरत हैं। रुचि समाजसेवा,कविता लेखन और विशेष रुप से कहानी लिखने में है।

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।