पक्षियों की चहचहाहट से,
एक एहसास
रोज होता है मुझे,
सुबह उठते ही
घर की मुंडेर पर कुछ
दाना-पानी रखने का।
होता है यह एहसास,
इसलिए भी कि-
भोर होते ही
पक्षियों का कलरव
मुझे चेता जाता है
अपने नन्हें बच्चों के साथ
चिंच्याते,गुटर-गुं करते।
मेरे ये मित्र,
आते ही हैं मुंडेर पर मेरी
यह आशा लिए कि-
मिलेगा उन्हें जरूर यहां
भरपेट दाना-पानी।
झरोखे से देखता हूँ मैं छुपकर,
उनका रोमांचित कर देने वाला
कलरव।
लड़ते-झगड़ते,
फुर्र से यहां-वहां बैठते
एक-दूजे से छीना-झपटी करते।
आंनदित हो जाता हूँ,
जब देखता हूँ
चिड़िया को अपने,
नन्हें की चोंच में
रखते हुए दाना,
मानता कहाँ है चिड़ा भी
रह-रहकर जताता है
प्यार अपना।
यही दृश्य,यही एहसास
देता है सुकून,
भर देता है मन में-
ऊर्जा,आत्मविश्वास
और देता है प्रेरणा,
कि-रे मन तू,
करता है क्यों चिंता
रखवाला है नl
हम सबका-
वह ईश्वर।
उन बेजुबान पक्षियों की तरह,
ही तू कर्म तो कर
निश्चित ही होगा,
फलित भी वहll
#देवेन्द्र सोनी