एहसास

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devendr soni

पक्षियों की चहचहाहट से,
एक एहसास
रोज होता है मुझे,
सुबह उठते ही
घर की मुंडेर पर कुछ
दाना-पानी रखने का।

होता है यह एहसास,
इसलिए भी कि-
भोर होते ही
पक्षियों का कलरव
मुझे चेता जाता है
अपने नन्हें बच्चों के साथ
चिंच्याते,गुटर-गुं करते।

मेरे ये मित्र,
आते ही हैं मुंडेर पर मेरी
यह आशा लिए कि-
मिलेगा उन्हें जरूर यहां
भरपेट दाना-पानी।

झरोखे से देखता हूँ मैं छुपकर,
उनका रोमांचित कर देने वाला
कलरव।

लड़ते-झगड़ते,
फुर्र से यहां-वहां बैठते
एक-दूजे से छीना-झपटी करते।

आंनदित हो जाता हूँ,
जब देखता हूँ
चिड़िया को अपने,
नन्हें की चोंच में
रखते हुए दाना,
मानता कहाँ है चिड़ा भी
रह-रहकर जताता है
प्यार अपना।

यही दृश्य,यही एहसास
देता है सुकून,
भर देता है मन में-
ऊर्जा,आत्मविश्वास
और देता है प्रेरणा,

कि-रे मन तू,
करता है क्यों चिंता
रखवाला है नl
हम सबका-
वह ईश्वर।

उन बेजुबान पक्षियों की तरह,
ही तू कर्म तो कर
निश्चित ही होगा,
फलित भी वहll

                                                       #देवेन्द्र सोनी

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डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

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