लोग कहते हैं
मेरे दो चेहरे हैं,
मैं उन्हें निराश करूंगा
मेरे धड़ के ऊपर चेहरों का एक विशाल जंगल है;
वो केवल दो भाषाएँ जानते हैं,
अपनी सीमाओं के अनुसार मुझे मापते हैंl
आत्म-वध के आविष्कार से अनभिज्ञ हूँ मैं,
अस्तित्व के अंतिम-संस्कार करने की कला से अनजानl
मुझे अपने सारे चेहरे प्रिय हैं,
वो मेरे भीतर की ज़मीन से उगे हैं;
कभी उन्हें जहरीली हवा आबो-हवा मिली
कभी ख़ूनी बारिश का मानसून,
कभी कोई गिद्ध,हड्डियों की खाद बिछा गया
कभी किसी जंगली फूल के बीज भी,
इन चेहरों को अपने रंग दे गए
वो मेरे भीतर छिपी छिछली नदी
और खूंखार भेड़ियों की मानुष प्रतिकृति हैंl
लोग मुझे अपनी सीमाओं के अनुसार पहचानते हैं,
वो मुझे सिर्फ दोमुंहा इंसान मानते हैंl
#डॉ.नरेन्द्र कुमार आर्य
परिचय : डॉ.नरेन्द्रकुमार आर्य का जन्म अगस्त १९७४ में मुरादाबाद(उत्तरप्रदेश) में हुआ हैl आपने उच्च शिक्षा में एम.ए. तथा एमबीए(विपणन),डाक्टरेट किया हुआ हैl आप भारत सरकार के उपक्रम में प्रबंधकीय पद पर कार्यरत हैंl लेखन की बात करें तो,विभिन्न प्रतिष्ठित साहित्यिक पत्रिकाओं एवं अकादमिक जर्नल्स में हिन्दी व अंग्रेजी में लेख व कविताएं प्रकाशित हैंl साथ ही कुछ बड़ी प्रतिष्ठित काव्य पत्रिकाओं में भी कविताएँ छापी हैंl एक अंतर्राष्ट्रीय पत्रिका द्वारा आपको सम्मान के लिए २०१४ में नामांकित किया गया थाl पटना विश्वविद्यालय स्थित कृष्णा घाट के समीप आपका निवास हैl