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थोड़ी शरमाती है,थोड़ी इतराती है…,
फिर चोरी चुपके से ख्वाबों में आती हैl
दीदार हुआ जबसे उन जालिम नजरों का…,
वो चैन से सोती है,मुझे नींद न आती है।
कमर को छूती है जब,लट उसकी काली…,
नागिन डर के मारे घूंघट में छुपती है।
नवयौवना की यारों हर बात निराली है…,
कब मन में बसती है,कब मन में आती है।
लाज का पल्लू भी सीने से सरकता है…,
बेखबर हो जब मेरे आग़ोश में आती है।
कभी दरिया तूफानी चढ़ता है उतरता है…,
कभी प्रेम की बरखा है,शीतल कर जाती है।
साड़ी का पल्लू भी झीना-झीना उसका…,
जब कनखी से देखे मेरी सुध-बुध खोती है।
नाम रेत पर जब मैं उसका लिखता हूॅं…,
लहरें भी जलती है,हर बार मिटाती है।
#डॉ. हरीश ‘पथिक’
परिचय : मध्यप्रदेश के डॉ.हरीष कुमार सोनी पेशे से अध्यापक हैं,और साहित्यिक नाम ‘पथिक’ लगाते हैंl आप सीहोर रोड की कालापीपल मंडी(जिला शाजापुर,म.प्र.) में रहते हैंlरूचि पढ़ाई,कविता और कहानी सहित कभी-कभी मंचों पर कविता पाठ में भी हैl कई दैनिक अखबारों के साथ अन्य पत्रिकाओं में भी कविता एवं लेख प्रकाशित होते रहते हैं। कुछ शोध-पत्र भी प्रकाशित हुए हैं। आपकी पीएच.डी. का विषय-हिन्दी एवं शीर्षक-`अज्ञेय की कहानियॉं:संवेदना और शिल्प` थाl
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परी के जैसी सुन्दरता है
और बुलबुल के जैसी चंचलता है
कहने को तो पुरा जहाँ कम है
हम तो सिर्फ़ इतना कहेंगे की
वो सबसे प्यारी है
वो सबसे प्यारी है
परी के जैसी सुन्दरता है
और बुलबुल के जैसी चंचलता है
कहने को तो पुरा जहाँ कम है
हम तो सिर्फ़ इतना कहेंगे की
वो सबसे प्यारी है
वो सबसे प्यारी है
बेहतरीन
Nice sir
Dhanyawad……… Sahiba
Thanks ji
Dhanyawad sirji