कहीं छुट ना जाय,
ज़रा ठहर जाओ,
कहां भाग रहे,किस ओर जाना है?
सृजन तो यहां है, कलियां मुस्कुराती,
कोयल गीत गाती, भौंरा करता गुनगुन,
धूप-छांव सुहलाती, तितली है खेलती।
तो फूल भाव दिखाते, मिलने को दो-दो मन,
आतुर इतराते, सुंगध आम्र बौरों की,
मदरसा भर जाती और ये चिड़िया ची ची करती जाती।
पीला धुला हुआ उजास,मन भर जाता।
प्रेम यहां गुनगुनाता,
कहां जा रहे,
जरा ठहरो,
कहीं फिर छुट ना जाय,आओ बसंत देख ले।
नाम-रेखा पारंगी
साहित्यिक उपनाम रेखा पारंगी
पतास्टेशन जंवाई बांध,जिला पाली राजस्थान।
शिक्षास्नातकोतर , अंग्रेजी, राजनीति विज्ञान,एवं इतिहास। कार्य क्षेत्रसरकारी शिक्षक।
विधागध एवं पध। प्रकाशनवूमेन एक्सप्रेस समाचार पत्र एवं इंदौर समाचार पत्र में।
उपलब्धि कोई नहीं
लेखन का उद्देश्य_लिखना मेरा शौक है और हिंदी को राष्ट्रभाषा का दर्जा देने में सहयोग।