
धन तेरस के बाद मन तेरस आना चाहिए – श्री सत्तन
इन्दौर। श्री मध्यभारत हिंदी साहित्य समिति के साप्ताहिक आयोजन सृजन विविधा में साहित्यकारों ने रचनापाठ किया।
सृजन विविधा में राष्ट्रकवि सत्यनारायण सत्तन ने ‘मन मन्दिर में बसे तुम सब का स्वागत करता हूँ, किन्तु विनय यही कि अंत तक साथ निभाना’ कविता सुनाई। उन्होंने कहा कि ‘धन तेरस का बाद मन तेरस आना चाहिए, मन तरसना नहीं चाहिए। त्योहारों पर भी साहित्य से जुड़ना गौरवशाली है।’
सुरेन्द्र व्यास सरल ने ‘रखे आँखों में जो तुझको, कभी दिल में उतरेगा’ व रामआसरे पाण्डेय ने ‘देखिए अपने शहर में भी दिवाली आ गई’ का रचनापाठ किया।
प्रथम सत्र में अनिल ओझा ने अपनी पहली पुस्तक ‘सुरभित सुमन’ पर बातचीत की। पेशे से शिक्षक श्री ओझा ने रचना-प्रक्रिया से अवगत करवाया।
कार्यक्रम का संचालन साहित्य मंत्री डॉ. पद्मा सिंह ने किया व अंत में आभार डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ ने माना।
इस मौके पर श्याम सिंह, दिलीप रामचंद्र नीमा, कीर्तिश धामारीकर ‘शास्त्री’, कमल दुबे, अमर सिंह मानावत आदि मौजूद रहे।

