पिता

0 0
Read Time2 Minute, 26 Second
anantram-300x196
मेरे पिता
सच्चे सीधे
इन्सान थे,
मेहनती
किसान थे
भगवान के
अच्छे और
सच्चे भक्त थे।
मुझे जबसे याद है
मौसम कोई भी हो,
सुबह पाँच बजे
रोज उठ जाते थे,
आधा-एक घंटा
भगवान की भक्ति
पलंग पर ही
बैठे-बैठे करते थे
फिर उठकर सुबह
के नित्यकार्य करते थे।
नहाने के बाद भगवान
को नहलाना,रामायण
को नियमित पढ़ना,
भक्ति चौबे के नाम
से जाने जाते थे,
ऐसे हमारे पिता थे।
मुझे याद है हम
भाई बहिनों को,
कभी मारना तो
दूर रहा,डाँटते
भी नहीं थे।
फिर भी सभी को
पढ़ाया-लिखाया,
अच्छे संस्कार देकर
सबको योग्य बनाया।
अब इस दुनिया में
हमारे साथ नहीं हैं,
मगर उनकी यादें
मन से दूर नहीं है,
ऐसे पिता को
बार-बार नमन
प्रणाम करता हूँ।
श्रध्दा भाव से,
पिता दिवस पर
चरण वंदन करता हूँ।

                                                                           #अनन्तराम चौबे

परिचय : अनन्तराम चौबे मध्यप्रदेश के जबलपुर में रहते हैं। इस कविता को इन्होंने अपनी माँ के दुनिया से जाने के दो दिन पहले लिखा था।लेखन के क्षेत्र में आपका नाम सक्रिय और पहचान का मोहताज नहीं है। इनकी रचनाएँ समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती हैं।साथ ही मंचों से भी  कविताएँ पढ़ते हैं।श्री चौबे का साहित्य सफरनामा देखें तो,1952 में जन्मे हैं।बड़ी देवरी कला(सागर, म. प्र.) से रेलवे सुरक्षा बल (जबलपुर) और यहाँ से फरवरी 2012 मे आपने लेखन क्षेत्र में प्रवेश किया है।लेखन में अब तक हास्य व्यंग्य, कविता, कहानी, उपन्यास के साथ ही बुन्देली कविता-गीत भी लिखे हैं। दैनिक अखबारों-पत्रिकाओं में भी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। काव्य संग्रह ‘मौसम के रंग’ प्रकाशित हो चुका है तो,दो काव्य संग्रह शीघ्र ही प्रकाशित होंगे। जबलपुर विश्वविद्यालय ने भीआपको सम्मानित किया है।

matruadmin

Average Rating

5 Star
0%
4 Star
0%
3 Star
0%
2 Star
0%
1 Star
0%

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Next Post

मातृभूमि होती सर्वोपरि

Mon Jun 19 , 2017
अहिँसा परमो धर्म हमारा, पर आगे की सुन लो बात। निजरक्षा के हेतु चलाना, आता हमको घूँसा-लात॥ मातृभूमि होती सर्वोपरि, अगर दिखाई उस पर आँख। भूल अहिंसा को जाएंगे, काटेंगे नव अंकुर पाँख॥ शस्त्र और शास्त्र दोनों ही, रामायण गीता सिखलाय। अब तो जागो मीत   हमारे, ‘अवध’ सभी को […]

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।