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पिता से अस्तित्व मेरा,पिता हैं जीवन बीज,
गुरु बनकर दी,सन्मार्ग की मुझको सीख़।
संघर्ष सिखाया और जगाया मेरा स्वाभिमान,
प्रतिछाया हूँ उनकी,पिता से मेरी पहचान।
पीड़ा जब होती मुझको,तो सह नहीं पाते थे,
बिन देखे मुझको,दो पल रह नहीं पाते थे।
जतन से सम्भाला मुझको,दिया स्नेह दुलार,
छूटा जब साथ उनका,रुक गया मेरा संसार।
विदा हुए जग से,पर मन में सदा रहते हैं,
घबराना नहीं कभी तुम,कानों में यह कहते हैं।
निराशा आती जब,कहती हूँ उनसे मन की बात,
आशीष मिलता मुझको,सिर पर रखते अपना हाथ।
रोम-रोम में ऋण उनका,भूल न पाऊँगीं वह प्यार,
पूज्य पिता के चरणों में,नमन है मेरा बारम्बार॥
#गुणवती गुप्ता ‘गार्गी’
परिचय : सुश्री गुणवती गुप्ता छत्तीसगढ़ के पुसौर (जिला रायगढ़) में रहती हैं। आपकी शिक्षा एम.ए.(संस्कृत) और जन्म स्थान पुसौर ही है। व्यवसाय से प्रधान पाठक हैं। सन्त गाडगे लोक शिक्षक अवार्ड 2014 सहित बेस्ट टीचर ऑफ़ दी इयर अवार्ड 2015,सावित्री बाई फुले नेशनल अवार्ड 2016 से भी आप सम्मानित हैं। विभिन्न विषयों पर लेखन करती रहती हैं।
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