खेत में ही फंदा लगा करता है वह आत्मघात, खबरें छपती अख़बारों में ,रहते सब चुपचाप। करोड़ों खाते लफंगे,पर किसानों को नहीं माफी, जिंदगी खत्म हो जाती और कर्ज रह जाता बाकी। खाद,बीज की चिंता, ऊपर से महंगाई की मार, विषम परिस्थितियों के आगे,वह जाता है हार। अन्नदाता है जो […]
gargi
बरसो,बरसो रे मेघ, बरसो,बरसो रे मेघ। धूप से सूख रहे हमारे खेत, बरसो,बरसो रे मेघ। बरसो,बरसो रे मेघ॥ नदी,पोखर,तालाब और नाले, कब बहेंगे फिर होकर मतवाले। रिमझिम फुहारों को धरती पर भेज, बरसो,बरसो रे मेघ। बरसो,बरसो रे मेघ॥ मेंढक,झींगुर,मोर,पपीहा, बुलाए तुमको मेघ संवरिया। गर्मी से झुलस रही इनकी देह, बरसो,बरसो […]