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सातारा जिले के कर्ज लेने वाले गरीब किसानों को देखिए,बस इनको आत्महत्या नहीं करनी है। हाँ,इनके कारण असली किसान आत्महत्या जरूर कर रहे,वैसे भी कर्ज एक बार माफ़ किया जाता है, गलती भी एक बार माफ़ की जाती है,दूसरी बार गलती नहीं,अपराध होता है। इसी प्रकार एक बार कर्ज माफ़ पूरे जीवन में ठीक है,किंतु बार-बार कर्ज माफ यानि ……???
ये आदत भी दगाबाज नेताओं और अधिकारियों की देन है। एक मत की खातिर तो दूसरा नोट की खातिर ये सब करवाता है,जबकि असली किसान तो या नशे में गिरा पड़ा है,या अपनी खेती में व्यस्त है। उसकी दिलचस्पी बसों को जलाने में नहीं है,बसें जलाना,दंगे करना और करवाना सिर्फ नेताओं, अधिकारियों और नकली किसानों का काम है। ये ही उनकी रोज़ी,रोटी और कमाई का जरिया है। ऐसे कुछ महान किसानों पर नज़र डालकर सोचिए जरुर-प्रभाकर घारगे( ९२लाख),अनिल देसाई(८५लाख),आ.मरंद पाटील(७२ लाख),
संजीवराजे निंबाळकर (६७ लाख),शिवांजली राजे(४८लाख) सहित कई किसान हैंजिनमें से कई ऋणधारक,अत्यंत सामान्य और गरीब पार्टी राष्ट्रवादी कांग्रेस के विधायक हैं। अब समझ में आया कि,कर्ज माफी क्यों चाहिए इन गरीब किसानों को…धन्य है भारत। क्या अब जनता मिलकर इनका घर-बार जो इस तरह बनाया है उसकी बुनियाद जलाएगी!!ताकि ऐसा बार-बार न हो। किसी माफी का तब ही कुछ मतलब निकलेगा,जब
नींव पर सुधार होगा।
असली समस्या किसानों की नहीं है,क्योंकि उनको कुछ मिलता ही नहीं है,बस बजट में प्रावधान होता है,और चोर,नेता तथा अधिकारी मिलकर किसान के नाम पर पैसा खा जाते हैं। किसानों के जो ऋण हैं वो लाखों में,किन्तु नकली किसानों के नाम पर जो है वो करोड़ों हैं। ये नेता और अधिकारी हैं,वर्ना ग्राम सेवक जो कुछ हज़ार तनख्वाह पाता है,बड़ी कारों और बंगलों का मालिक नहीं होता। दरअसल नेताओं और अधिकारियों ने जो असल किसान हैं,उनको नशों में झोंक दिया है,और एक रुपए के अनाज में ऐसा फँसा दिया है कि,वो किसानी ही भूल गया है,या कहें कि और गर्त में जा रहा है। आज ज़रूरत है कि,जनता और ईमानदार नेतागण ग्रामों में समितियां बनाएँ,जिसमें पढ़े-लिखे किसान हों और जो मूल रुप से खेती या जैविक खेती करते हों। इन ग्राम समितियों को बनाकर उनके द्वारा ग्रामीण युवक -युवतियों को संस्कारवान और बलशाली बनाया जाए,ग्रामवासियों को व्यसन मुक्त बनाया जाए,सभी के लिए पढ़ाई की उचित व्यवस्था,वर्षा जल संरक्षण,पर्यावरण को सही करना,कम-से- कम अपने परिवार के लिए जैविक खेती करने आदि का कार्य किया जाए। मेरा मानना है कि,किसानों को कुछ योजनाओं का लाभ देना है,तो जो खेती कर रहे हैं, उनको ही दो,न कि कागजी किसानों को। वैसे ये कटु सत्य है कि, किसानों की योजनाओं का लाभ असली खेती करने वाले को मिलता ही नहीं है,क्योंकि वो न तो ग्राम सेवक के चक्कर लगा सकता है,न ही ग्राम सेवक खुद भी चाहता है। बस नाम हो जाए और सारी राशि खुद अधिकारियों के साथ मिलकर खा जाए ,तो बेईमान नेताओं और मंत्रियों को भी कुछ टुकड़े डालकर ……….???
आज देश को खेती के साथ अच्छे नेताओं व अधिकारियों की सख्त आवश्यकता है। जिस दिन ऐसे नेता और अधिकारी देश को मिल जाएंगे,उस दिन से ही अच्छे दिन आएँगे।
#शिवरतन बल्दवा
परिचय : जैविक खेती कॊ अपनाकर सत्संग कॊ जीवन का आधार मानने वाले शिवरतन बल्दवा जैविक किसान हैं, तो पत्रकारिता भी इनका शौक है। मध्यप्रदेश की औधोगिक राजधानी इंदौर में ही रिंग रोड के करीब तीन इमली में आपका निवास है। आप कॉलेज टाइम से लेखन में अग्रणी हैं और कॉलेज में वाद-विवाद स्पर्धाओं में शामिल होकर नाट्य अभिनय में भी हाथ आजमाया है। सामाजिक स्तर पर भी नाट्य इत्यादि में सर्टिफिकेट व इनाम प्राप्त किए हैं। लेखन कार्य के साथ ही जैविक खेती में इनकी विशेष रूचि है। घूमने के विशेष शौकीन श्री बल्दवा अब तक पूरा भारत भ्रमण कर चुके हैं तो सारे धाम ज्योतिर्लिंगों के दर्शन भी कई बार कर चुके हैं।
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