मातृभाषा, अनवरत एवं इन्दौर टॉक ने मनाया आज़ादी उत्सव
इन्दौर। कवि सम्मेलन शताब्दी वर्ष निमित्त स्वतंत्रता उत्सव के रूप में बुधवार को मातृभाषा, अनवरत थिएटर एवं इन्दौर टॉक ने काव्य उत्सव आयोजित किया, जिसमें कवियों ने अपनी कविताओं के माध्यम से भारत के स्वाधीनता समर का स्मरण किया। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि दुबई से पधारे कवि डॉ. नितीन उपाध्ये रहे।
स्वागत संबोधन मातृभाषा के संस्थापक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ ने दिया। अतिथि स्वागत अनवरत के निदेशक नीतेश उपाध्याय व इन्दौर टॉक के संस्थापक अतुल तिवारी ने किया।
काव्य उत्सव में कीर्ति मेहता, आदर्श जैन, विकास शुक्ला, राखी जैन व गोपाल इंदौरी ने काव्य पाठ किया।
मुख्य अतिथि के रूप में दुबई से पधारे डॉ नितिन उपाध्ये ने कहा कि ‘साहित्यकार समाज में परिवर्तन ला सकते है, उन्हें प्रयास करना चाहिए।’
संस्थान द्वारा सभी प्रतिभागियों को प्रमाणपत्र एवं प्रतीक चिह्न देकर सम्मानित किया गया। संचालन आदर्श जैन ने किया व आभार संयोजक हर्षित मालाकार ने माना।
काव्य उत्सव में कीर्ति मेहता ने ‘परशुराम के फरसे–सी तीखी पैनी धार हैं हम। ऋषि दधीचि की हड्डी का बना हुआ हथियार हैं हम।’
गोपाल इंदौरी ने कविता ‘अब तक की जो ही कमाई दे दो ना, सब परिंदों को रिहाई दे दोना। ये माना की फ़ैसला होगा तेरे हक़ में, फिर भी थोड़ी–सी सफ़ाई दे दो ना।’
राखी जैन ने अपनी कविता ‘क़ैद में ख्वाब हों जब मेरे देश के/ दिल लुभाता कोई भी नज़ारा नहीं। सरफ़रोशी रगों में रहेगी सदा/ मुल्क़ होगा कभी बेसहारा नहीं।’
विकास शुक्ला ने अपनी कविता में राम और कृष्ण को याद किया शबरी की भक्ति या केवट का भाव उन्हें, भव से क्या पार भी उतार नहीं सकता था, कांख में दबाए जो घूम लिया तीन फेर, बाली क्या रावण को मार नही सकता था, जननी जो जग की हैं जानकी जी ज्वाला सी, हरना तो क्या कोई निहार नहीं सकता था। किन्तु जो राम नही आते धरा पे कोई, शिला की अहिल्या को तार नहीं सकता था। फिर आदर्श जैन ने ‘कौन है अपना कौन पराया! परख लिया सब ने मुझको पर दुनिया को मैं परख ना पाया, बचा अकेला सफ़र में “साहिल”, छोड़ गया ख़ुद का ही साया।’
इसके साथ हर्षित मालाकार ने देश में न जाति धर्म का दंगा हो, शहीदों की आरज़ू है हर ज़ुबां पर पावन गंगा हो,
और कफ़न चाहे हो रंग–बिरंगे, शहीदों के सम्मान में बस तिरंगा हो।’ आयोजन में जयसिंह रघुवंशी, मणिमाला शर्मा, कुलदीप आदि मौजूद रहे।