सच्चा किसान

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किसान एक
सीधा सच्चा
इन्सान है,
मेहनत करता है
मेहनत की खाता है
फटे हाल रहता है।
मिट्टी से खेलता है,
मिट्टी में रहता है
दिन-रात खून
पसीना बहाता है,
एक-दिन दो दिन नहीं
हमेशा ही करता है।
सादा जीवन उच्च
विचार रखता है,
हर प्रकार का
अनाज पैदा करता है,
परंतु स्वयं दाल-रोटी
बाटी गक्कड़ भरता
ज्यादातर खाता है,
फिर भी मेहनत
करने में सुवह से
शाम तक सिर से पैर
तक पसीना बहाता है।
गुड़-गन्ने के सीजन में,
किसान के खेत में
कोई पहुँच जाए
गन्ने का रस पिलाता है,
गुड भी खिलाता है
जाते समय दो-चार
किलो साथ में
बाँधकर रख देता है
किसान का दिल
इतना उदार होता है।
घर आए मेहमान को
भगवान का रूप
देखता है समझता है,
यही तो मेहनती और
सच्चा किसान होता है।

                                                                         #अनन्तराम चौबे

परिचय : अनन्तराम चौबे मध्यप्रदेश के जबलपुर में रहते हैं। इस कविता को इन्होंने अपनी माँ के दुनिया से जाने के दो दिन पहले लिखा था।लेखन के क्षेत्र में आपका नाम सक्रिय और पहचान का मोहताज नहीं है। इनकी रचनाएँ समाचार पत्रों में प्रकाशित होती रहती हैं।साथ ही मंचों से भी  कविताएँ पढ़ते हैं।श्री चौबे का साहित्य सफरनामा देखें तो,1952 में जन्मे हैं।बड़ी देवरी कला(सागर, म. प्र.) से रेलवे सुरक्षा बल (जबलपुर) और यहाँ से फरवरी 2012 मे आपने लेखन क्षेत्र में प्रवेश किया है।लेखन में अब तक हास्य व्यंग्य, कविता, कहानी, उपन्यास के साथ ही बुन्देली कविता-गीत भी लिखे हैं। दैनिक अखबारों-पत्रिकाओं में भी रचनाएँ प्रकाशित हुई हैं। काव्य संग्रह ‘मौसम के रंग’ प्रकाशित हो चुका है तो,दो काव्य संग्रह शीघ्र ही प्रकाशित होंगे। जबलपुर विश्वविद्यालय ने भीआपको सम्मानित किया है।

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