म.प्र. ने जलाई हिंदी की मशाल

2 0
Read Time7 Minute, 0 Second

हिंदी लेख माला के अंतर्गत डॉ. वेदप्रताप वैदिक

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

केरल, तेलंगाना और तमिलनाडू के क्रमशः मुख्यमंत्री, मंत्री और नेताओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मांग की है कि उनके प्रदेशों पर हिंदी न थोपी जाए। ऐसा उन्होंने इसलिए किया है कि संसद की राजभाषा समिति ने केंद्र सरकार की भर्ती-परीक्षाओं में हिंदी अनिवार्य करने और आईआईटी तथा आईआईएम शिक्षा संस्थाओं में भी हिंदी की पढ़ाई को अनिवार्य करने का सुझाव दिया है। एक तरफ़ दक्षिण भारत से हिंदी विरोध की यह आवाज़ उठ रही है और दूसरी तरफ़ मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज चौहान ने भारत के भाषाई अंधकार में हिंदी की मशाल जला दी है। उन्होंने एक गज़ब का ऐतिहासिक कार्य करके दिखा दिया है। उनके प्रयत्नों से एमबीबीएस के पहले वर्ष की किताबों के हिंदी संस्करण तैयार हो गए हैं। उनका विमोचन भोपाल में 16 अक्टूबर को गृहमंत्री अमित शाह करेंगे। गृहमंत्री के तौर पर राजभाषा को बढ़ाने के लिए अमित शाह के उत्साह को मैं तहे-दिल से दाद देता हूँ। अब 56-57 साल पहले जब मैंने अपना अंतरराष्ट्रीय राजनीति का पीएच.डी. थीसिस हिंदी में लिखने की मांग की थी तो देश में इतना हंगामा मचा था कि संसद की कार्रवाई कई बार भंग हो गई थी। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी सहित सभी शीर्ष विरोधी नेताओं ने मेरा समर्थन किया और उच्च शोध के लिए हिंदी ही नहीं, समस्त भारतीय भाषाओं के द्वार खुल गए लेकिन आज तक भारत में मेडिकल, वैज्ञानिक और तकनीकी पढ़ाई का माध्यम अंग्रेज़ी ही बना हुआ है। कोई सरकार इस गुलामी से भारत को मुक्त नहीं कर सकी। यह काम मेरे आग्रह पर शिवराज चौहान और उनके स्वास्थ्य-शिक्षा मंत्री विश्वास सारंग ने करके दिखा दिया।

म.प्र. के उन मेरे मित्र डाॅक्टर बंधुओं का भी हार्दिक अभिनंदन, जिन्होंने एमबीबीएस की हिंदी पुस्तकें तैयार करने में दिन-रात एक कर दिए। मुझे विश्वास है कि देश के अन्य प्रदेशों की सरकारें अपनी-अपनी भाषाओं में इन अछूते विषयों पर ग्रंथ प्रकाशित करने की प्रेरणा भोपाल से ग्रहण करेंगी। केंद्र सरकार के लिए यह एक चुनौती है। वह हिंदी तथा अन्य भाषाओं में ऐसे ग्रंथ प्रकाशित करने का व्रत क्यों नहीं ले लेती? म.प्र. की चौहान सरकार ने देश के करोड़ों गरीबों, ग्रामीणों और पिछड़ों के बच्चों की प्रगति मार्ग खोल दिया है। जहाँ तक अहिंदीभाषी प्रांतों का प्रश्न है, उन पर हिंदी थोपने की कोई कोशिश नहीं होनी चाहिए। यदि उनके बच्चों को भी उनकी उच्चतम शिक्षा उनकी मातृभाषा के ज़रिए दी जाने लगे तो वे हिंदी को संपर्क-भाषा के तौर पर सहर्ष स्वीकार कर लेंगे। दूसरे शब्दों में नरेंद्र मोदी और अमित शाह को ”हिंदी लाओं” का नहीं, ”अंग्रेज़ी हटाओ” का नारा देना चाहिए, जो काम महर्षि दयानंद, महात्मा गांधी और डाॅ. लोहिया ने शुरु किया था और जिसे गुरु गोलवलकर जैसे महामनाओं ने भी आगे बढ़ाया था। यदि अंग्रेज़ी माध्यम की पढ़ाई पर देश भर में प्रतिबंध लग जाए तो विभिन्न स्वभाषाओं में पढ़े लोग परस्पर संपर्क के लिए कौन–सी भाषा का सहारा लेंगे? हिंदी के अलावा वह कौन–सी भाषा होगी? वह और कोई भाषा हो ही नहीं सकती। इसीलिए मैं कहता रहा हूं कि कोई स्वेच्छा से अंग्रेज़ी तथा अन्य विदेशी भाषाएँ पढ़ना चाहे तो ज़रूर पढ़े, जैसे कि मैंने कई विदेशी भाषाएँ सीखी हैं लेकिन देश में हिंदी तभी चलेगी जबकि स्वभाषाएँ सर्वत्र अनिवार्य होंगी।
13.10.2022

डॉ. वेदप्रताप वैदिक

वरिष्ठ पत्रकार एवं हिन्दीयोद्धा
संरक्षक, मातृभाषा उन्नयन संस्थान

कौन हैं डॉ. वेदप्रताप वैदिक

पत्रकारिता, राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति, हिंदी के लिए अपूर्व संघर्ष, विश्व यायावरी, अनेक क्षेत्रों में एक साथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले अद्वितीय व्यक्तित्व के धनी मातृभाषा उन्नयन संस्थान के संरक्षक डाॅ. वेदप्रताप वैदिक का जन्म 30 दिसंबर 1944 को पौष की पूर्णिमा पर इंदौर में हुआ। वे सदा मेधावी छात्र रहे। वे भारतीय भाषाओं के साथ रूसी, फ़ारसी, जर्मन और संस्कृत के भी जानकार रहे। उन्होंने अपनी पीएच.डी. के शोधकार्य के दौरान न्यूयॉर्क की कोलंबिया विश्वविद्यालय, मास्को के ‘इंस्तीतूते नरोदोव आजी’, लंदन के ‘स्कूल ऑफ़ ओरिंयटल एंड अफ़्रीकन स्टडीज़’ और अफ़गानिस्तान के काबुल विश्वविद्यालय में अध्ययन और शोध किया। कुशल पत्रकार, हिंदी के लिए 13 वर्ष की उम्र से सत्याग्रह करने वाले हिंदी योद्धा, विदेश नीति पर गहरी पकड़ रखने वाले सम्पादक डॉ. वैदिक जी कई पुस्तकों के लेखक रहे। सैंकड़ो सम्मानों से विभूषित डॉ. वैदिक जी 14 मार्च 2023, मंगलवार को गुरुग्राम स्थित आवास से परलोक गमन कर गए।

matruadmin

Next Post

विश्व हिंदी या अंग्रेज़ी की गुलामी?

Sun Apr 16 , 2023
हिंदी लेख माला के अंतर्गत डॉ. वेदप्रताप वैदिक डॉ. वेदप्रताप वैदिक फ़िज़ी में 15 फ़रवरी से 12वाँ विश्व हिंदी सम्मेलन होने जा रहा है। यह सम्मेलन 1975 में नागपुर से शुरु हुआ था। उसके बाद यह दुनिया के कई देशों में आयोजित होता रहा है। जैसे मॉरिशस, त्रिनिदाद, सूरिनाम, अमेरिका, […]

पसंदीदा साहित्य

संस्थापक एवं सम्पादक

डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’

आपका जन्म 29 अप्रैल 1989 को सेंधवा, मध्यप्रदेश में पिता श्री सुरेश जैन व माता श्रीमती शोभा जैन के घर हुआ। आपका पैतृक घर धार जिले की कुक्षी तहसील में है। आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। आपने अब तक 8 से अधिक पुस्तकों का लेखन किया है, जिसमें से 2 पुस्तकें पत्रकारिता के विद्यार्थियों के लिए उपलब्ध हैं। मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष व मातृभाषा डॉट कॉम, साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं। डॉ. अर्पण जैन ने 21 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण उन्हें वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया। इसके अलावा आप सॉफ़्टवेयर कम्पनी सेन्स टेक्नोलॉजीस के सीईओ हैं और ख़बर हलचल न्यूज़ के संस्थापक व प्रधान संपादक हैं। हॉल ही में साहित्य अकादमी, मध्य प्रदेश शासन संस्कृति परिषद्, संस्कृति विभाग द्वारा डॉ. अर्पण जैन 'अविचल' को वर्ष 2020 के लिए फ़ेसबुक/ब्लॉग/नेट (पेज) हेतु अखिल भारतीय नारद मुनि पुरस्कार से अलंकृत किया गया है।