डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
हिन्दी के आन्दोलन का वह शक्तिशाली नेतृत्वकर्ता जिन्होंने सैकड़ों वर्षों के संघर्ष को नई दिशा देकर भारत के विभिन्न प्रान्तों में हिन्दी का बिगुल बजा दिया। ऐसे रणनायक डॉ. वेदप्रताप वैदिक के विचारों को जानने, समझने की बहुत आवश्यकता है।
क्या आप जानते है कौन है डॉ. वेदप्रताप वैदिक
पत्रकारिता, राजनीतिक चिंतन, अंतरराष्ट्रीय राजनीति, हिन्दी के लिए अपूर्व संघर्ष, विश्व यायावरी, अनेक क्षेत्रों में एक साथ मूर्धन्यता प्रदर्शित करने वाले अद्वितीय व्यक्तित्व के धनी मातृभाषा उन्नयन संस्थान के संरक्षक डाॅ. वेदप्रताप वैदिक का जन्म 30 दिसंबर 1944 को पौष की पूर्णिमा पर इंदौर में हुआ। वे सदा मेधावी छात्र रहे। वे भारतीय भाषाओं के साथ रूसी, फ़ारसी, जर्मन और संस्कृत के भी जानकार रहे। उन्होंने अपनी पीएच.डी. के शोधकार्य के दौरान न्यूयॉर्क की कोलंबिया विश्वविद्यालय, मास्को के ‘इंस्तीतूते नरोदोव आजी’, लंदन के ‘स्कूल ऑफ़ ओरिंयटल एंड अफ़्रीकन स्टडीज़’ और अफ़गानिस्तान के काबुल विश्वविद्यालय में अध्ययन और शोध किया। कुशल पत्रकार, हिन्दी के लिए 13 वर्ष की उम्र से सत्याग्रह करने वाले हिन्दी योद्धा, विदेश नीति पर गहरी पकड़ रखने वाले सम्पादक डॉ. वैदिक जी कई पुस्तकों के लेखक रहे। सैंकड़ो सम्मानों से विभूषित आदरेय डॉ. वैदिक जी 14 मार्च 2023, मंगलवार को गुरुग्राम स्थित आवास से परलोक गमन कर गए।
डॉ. वेदप्रताप वैदिक के कथन (Quotes)
1.हिन्दी बने विश्व भाषा
आजकल हम आज़ादी का 75 वां वर्ष मना रहे हैं लेकिन हमारे कानून, हमारे सरकारी आदेश, हमारे ऊँचे अदालती फ़ैसले, हमारी ऊँची पढ़ाई और शोध-कार्य सभी काम-काज अंग्रेज़ी में चल रहे हैं और हम हिन्दी को विश्व भाषा बनाने पर तुले हुए हैं। यह ठीक है कि अन्तरराष्ट्रीय व्यापार, कूटनीति और शोधकार्य के लिए हमें कई विदेशी भाषाओं को अवश्य सीखना चाहिए लेकिन हम अकेली अंग्रेज़ी की ग़ुलामी में डूबे हुए हैं। -डॉ. वेदप्रताप वैदिक
2. भारत बनेगा विश्व-शक्ति
‘सारे भारत में किसी भी विदेशी भाषा को पढ़ाई का माध्यम बनाने पर कड़ा प्रतिबंध होना चाहिए। कौन करेगा, यह काम? यह काम वही संसद, वही सरकार और वही प्रधानमंत्री कर सकते हैं, जिनके पास राष्ट्रोन्नति की मौलिक सोच हो और नौकरशाहों की नौकरी न करते हों। जिस दिन यह सोच पैदा होगी, उसी दिन से भारत विश्व-शक्ति बनना शुरु हो जाएगा।’ -डॉ. वेदप्रताप वैदिक
3. हिन्दी महारानी है, अंग्रेज़ी नौकरानी
नौकरानी को घर का मुखिया या मालिक नहीं बनाया जाता। अंग्रेज़ी की ग़ुलामी से बचते हुए हमें अपनी हिन्दी को महत्त्व देना चाहिए। हिन्दी महारानी है, अंग्रेज़ी नौकरानी। –डॉ. वेदप्रताप वैदिक
4. आरक्षण ग़रीबी आधारित हो
आरक्षण का सिर्फ़ एक ही मानदंड हो और वह हो गरीबी की रेखा। इसमें सभी जातियों के लोगों को समान सुविधा मिलेगी। जो बच्चे परिश्रमी और योग्य होंगे, वे नौकरियों में आरक्षण की भीख क्यों मांगेंगे? वे स्वाभिमानपूर्वक काम करेंगे। वे हीनताग्रंथि से मुक्त होंगे। –डॉ. वेदप्रताप वैदिक
5. अंग्रेज़ से ज़्यादा खतरनाक अंग्रेज़ी
अंग्रेज़ तो चले गए लेकिन अंग्रेज़ी हम पर लाद गए। अंग्रेज़ के राज से भी ज़्यादा खतरनाक है, अंग्रेज़ी का राज। इसने हमारे लोकतंत्र को कुलीनतंत्र में बदल दिया है।- डॉ. वेदप्रताप वैदिक
6.न्याय का भारतीयकरण
यदि न्याय-व्यवस्था का हमें भारतीयकरण करना है तो सबसे पहले उसे अंग्रेज़ी के शिकंजे से मुक्त करना होगा। न्याय व्यवस्था का भारतीयकरण आवश्यक है।- डॉ. वेदप्रताप वैदिक
7. सामाजिक मीडिया पर अंकुश स्वयं लगाएं
सामाजिक मीडिया तो समुद्र की लहरों की तरह है। उसे क़ाबू करना आसान नहीं है। बस, एक ही तरीका है कि उसका इस्तेमाल करने वाले स्वयं पर क़ाबू रखें और उसमें चल रही ख़बरों और बातों को अच्छी तरह चबाए बिना नहीं निगलें। – डॉ. वेदप्रताप वैदिक
8. भारतीय भाषाओं की मजबूती
भारतीय भाषाओं के अस्तित्व से ही देश का अस्तित्व बचेगा। – डॉ. वेदप्रताप वैदिक
9. स्वभाषा-माध्यम में हो पढ़ाई
यदि हमारे नेता लोग चाहते हैं कि गरीबों, ग्रामीणों, पिछड़ों, किसानों और मजदूरों के बच्चों को भी जीवन में समान अवसर मिलें तो देश में सभी बच्चों के लिए स्वभाषा-माध्यम की पढ़ाई अनिवार्य होनी चाहिए।- डॉ. वेदप्रताप वैदिक
10. विदेशी सम्पर्कों के लिए सभी भाषा सिखाएं
विदेशी संपर्कों के लिए हमें सिर्फ अंग्रेजी पर निर्भर नहीं रहना चाहिए। विदेश-व्यापार, विदेश नीति और उच्च-शोध के लिए अंग्रेजी के साथ-साथ फ्रांसीसी, जर्मन, चीनी, रूसी, अरबी, हिस्पानी, जापानी आदि कई विदेशी भाषाओं की पढ़ाई भी भारत में सुलभ होनी चाहिए। दुनिया के किसी भी संपन्न और शक्तिशाली राष्ट्र में छात्र-छात्राओं की पढ़ाई का माध्यम विदेशी भाषा नहीं है। -डॉ. वेदप्रताप वैदिक
हिन्दी भाषा के प्रचार में डॉ. वेदप्रताप वैदिक के विचार, लेख व कथन बहुत महत्त्वपूर्ण हैं। उन्हें समझना, उनका अनुसरण करना और उनके लेखन को आत्मसात करना ही डॉ. वैदिक जी के प्रति सच्ची श्रद्धांजलि होगी।
डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
राष्ट्रीय अध्यक्ष, मातृभाषा उन्नयन संस्थान, भारत