मनोज कुमार
यह उत्सव है एक बूंद स्याही का.यह उत्सव है लोकतंत्र को समृद्ध और सशक्त बनाने का. यह उत्सव है एक पारदर्शी और जिम्मेदार सरकार के चयन का. यह उत्सव है एक आम आदमी के अधिकार का उपयोग करने का. यह उत्सव है एक बूंद स्याही अंगुली में टपका कर इस बात की आश्वस्ति का कि भारत के लोकतंत्र की जड़ें मजबूत हैं और हमारा संविधान उनके मौलिक अधिकारों की रक्षा करता है.
भारत का लोकतंत्र दुनिया का सबसे बड़ा और समृद्ध लोकतंत्र है. सर्वधर्म-समभाव के साथ लोकतंत्र के मंदिर स्वरूप विधायिका कार्य करती है. इसे सुचारू और पारदर्शी बनाने के लिए विधि-सम्मत सामान्य स्थिति में प्रत्येक पांच वर्ष में विधानसभा एवं लोकसभा के चुनाव कराये जाते हैं. इस वर्ष 2023 में देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव का बिगुल बज चुका है. राजनीतिक हस्तक्षेप एवं मतदाताओं को लुभाने से बचाने के लिए चुनाव आयोग ने आचार संहिता लागू किया हुआ है जिसमें सरकार तो चुनाव परिणाम आने तक बनी रहेगी लेकिन लोक-लुभावन घोषणा करने की उसकी शक्ति क्षीण हो गई है. अब वह एक तरह से केयरटेकर सरकार होती है और चुनाव परिणाम के साथ नई सरकार का गठन होता है. चुनाव की तारीख घोषित हो जाने के साथ ही जिन राज्यों में चुनाव होना है, उनमें आदर्श आचार संहिता तत्काल प्रभाव से लागू हो जाती है. यह सब क्रिया और प्रक्रिया चुनाव को पारदर्शी बनाने की प्रक्रिया को पूर्ण करने के लिए होता है. मतदाता भ्रमित ना हो और ना ही किसी भी राजनीतिक दल के बहकावे में आकर अपने विशिष्ठ मत का, अपने अधिकार का उपयोग कर सकें.
भारत की संघीय व्यवस्था में पहला आम चुनाव 1952 को हुआ था और इसके बाद राज्य विधानसभा चुनाव का सिलसिला आरंभ हुआ. संवैधानिक प्रक्रिया के अनुरूप प्रत्यके पांच वर्ष के लिए सरकारों का चयन किया जाता है किन्तु कुछ विषम स्थितियों में इनका कार्यकाल कम भी हो जाता है. आजादी के बाद 1952 से वर्ष 2023 तक भारतीय समाज में ऐसी विकट स्थिति का निर्माण भी हुआ है जब सरकारें अपनी नियत पांच वर्ष की अवधि पूर्ण नहीं कर पायी हैं जिसे हम मध्यावधि चुनाव कहते हैं. मध्यावधि चुनाव में भी वही सम्पूर्ण प्रक्रिया का पालन करना होता है ताकि एक स्वच्छ एवं स्थायी सरकार का निर्माण हो सके.
ग्राम पंचायत के चुनाव से लेकर विधानसभा एवं लोकसभा चुनाव में एक-एक वोट कीमती होता है. यह वोट आम आदमी की ताकत है जो अपनी पसंद की सरकार का चयन करता है. भारतीय संविधान में भारत के प्रत्येक नागरिक जिनकी आयु 18 वर्ष या उससे ऊपर की है, उन्हें मताधिकार दिया गया है. वोट देना सिर्फ एक अधिकार नहीं है; यह लोकतंत्र का एक मूलभूत स्तंभ है जो नागरिकों को अपने देश के भविष्य को आकार देने का अधिकार देता है। भारत में, वोट डालने का कार्य अत्यधिक महत्व रखता है, क्योंकि यह लाखों लोगों के सपनों, चिंताओं और आकांक्षाओं को आवाज देता है। इस महत्वपूर्ण नागरिक कर्तव्य का पालन करके, प्रत्येक नागरिक बेहतर भारत की दिशा में काम करते हुए परिवर्तन का संवाहक बन जाता है।
समय परिवर्तन एवं बढ़ती आबादी की जरूरत के अनुरूप मतदान की प्रक्रिया में भी काफी परिवर्तन हुए हैं. मतदान एक ऐसी प्रक्रिया होती है जो जनता द्वारा अपने प्रतिनिधि को अपना मत देखकर स्वीकार करती है। मतदान की बदली विधि और कुछ जरूरी तथ्य पर गौर करें-
- प्राचीन मतदान डिब्बे से लेकर आज के वोटिंग मशीन तक हम अलग-अलग तरीके बदल चुके हैं।
- पहले आम चुनाव में प्रत्येक उम्मीदवारों के लिए पोलिंग बूथ के अंदर स्टील की मत पेटियां रखी जाती थी। आज वोटिंग मशीनों का आविष्कार हो चुका है जिससे मतदाता मत देते हैं।
- प्रत्येक मतदाता को पसंदीदा उम्मीदवार के पेटी में डालने के लिए एक खाली मतपत्र दिया जाता था।
- प्रत्येक बॉक्स में उम्मीदवार का नाम और उसका प्रतीक बॉक्स के अंदर और बाहर दोनों जगह प्रदर्शित होता था।
- मतदाता को पसंदीदा उम्मीदवार के नाम पर मोहर लगानी होती थी।
- मतपत्रों को दूसरे आम चुनाव के बाद ही पेश किया जाता था।
- मतदान प्रक्रिया दो प्रकार से की जाती है पहला प्रत्यक्ष रूप से मतदान दूसरा अप्रत्यक्ष रूप से मतदान।
- पहले मतदान की प्रक्रिया बहुत ही जटिल थी किंतु आज हर व्यक्ति के लिए मतदान की प्रक्रिया सरल हो चुकी है। जनता अपना मत देकर अपने पसंदीदा व्यक्ति का चुनाव करती है और अपने जनप्रतिनिधि के रूप में चयन करती है.
भारतीय संविधान ने धर्मनिरपेक्षता का सिद्धांत मानते हुए और व्यक्ति की महत्ता को स्वीकारते हुए, अमीर गरीब के अंतर को, धर्म, जाति एवं संप्रदाय के अंतर को, तथा स्त्री पुरुष के अंतर को मिटाकर प्रत्येक वयस्क नागरिक को देश की सरकार बनाने के लिए अथवा अपना प्रतिनिधि निर्वाचित करने के लिए वोट देने का अमूल्य अधिकार प्रदान किया है। इस दृष्टि से भी भारतीय जनतंत्र का विशेष महत्व है। वहीं पश्चिमी देशों में, जनतांत्रिक प्रणाली अब विकसित हो चुकी है, एकाएक सभी वयस्क नागरिकों को मताधिकार नहीं प्रदान किया गया था। धीरे धीरे, सदियों में, उन्होंने अपने सभी वयस्क नागरिकों को मताधिकार दिया है। कहीं कहीं तो अब भी मताधिकार के मामले में रंग एवं जातिभेद बरता जाता है।
कौन कर सकता है वोट : भारतीय संविधान के अनुच्छेद 326 एक सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार को निर्वाचित सरकार के सभी स्तरों के चुनावों के आधार के रूप में परिभाषित करता है। सार्वजनिक मताधिकार से तात्पर्य है कि सभी नागरिक जो 18 वर्ष और उससे अधिक उम्र के हैं, उनकी जाति या शिक्षा, धर्म, रंग, प्रजाति और आर्थिक परिस्थितियों के बावजूद वोट देने के लिए स्वतंत्र हैं।
मतदान की पुरानी व्यवस्था क्या थी : हालांकि नवीन संविधान लागू होने के पूर्व भारत में 1935 के ‘गवर्नमेंट ऑव इंडिया एक्ट’ के अनुसार केवल 13 प्रतिशत जनता को मताधिकार प्राप्त था। मतदाता की अर्हता प्राप्त करने की बड़ी बड़ी शर्तेें थीं। केवल अच्छी सामाजिक और आर्थिक स्थिति वाले नागरिकों को मताधिकार प्रदान किया जाता था। अनेक लोगों को मतदान की इस पुरानी व्यवस्था के बारे में जानकारी ही नहीं है.
अनिवार्य मतदान क्या है : भारत में अनिवार्य मतदान की व्यवस्था नहीं है और यही कारण है कि व्यवस्था और अपने जनप्रतिनिधि से नाराज मतदाता कई बार चुनाव का बायकाट करने का ऐलान कर देते हैं लेकिन अनिवार्य मतदान का कानून होता तो किसी चुनाव में मतदाता को अपना मत देना या मतदान केन्द्र पर उपस्थित होना अनिवार्य होता। यदि कोई वैध मतदाता, मतदान केन्द्र पहुंचकर अपना मत नहीं देता है तो उसे पहले से घोषित कुछ दण्ड का भागी बनाया जा सकता है।
33 देशों में अनिवार्य मतदान की व्यवस्था : वर्तमान समय में 33 देशों में मतदान करना जरूरी है। कई देशों में मतदान ना करने पर दंड का प्रावधान है।
मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 के परिप्रेक्ष्य में मतदाता सूची में करीब 17 लाख मतदाता बढ़े हैं। प्रदेश में सामान्य मतदाताओं की संख्या 5 करोड़ 60 लाख 60 हजार 925 हो गई है। इसमें पुरुष मतदाता 2 करोड़ 88 लाख 25 हजार 607 और महिला मतदाता 2 करोड़ 72 लाख 33 हजार 945 एवं थर्ड जेंडर 1373 हैं। रक्षा सेवा के मतदाता की संख्या 75 हजार 304 है, जिसमें पुरुष 73 हजार 20 और महिला मतदाता 2 हजार 284 है। इस प्रकार प्रदेश में कुल 5 करोड़ 61 हजार 36 हजार 229 मतदाता दर्ज हैं। इनमें 6 लाख 53 हजार 640 वरिष्ठ मतदाता और 5 लाख 5 हजार 146 दिव्यांग मतदाता और 99 अप्रवासी भारतीय हैं।
मध्यप्रदेश के मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी अनुपम राजन के अनुसार विशेष पुनरीक्षण-2023 में 16 लाख 83 हजार 790 नए मतदाता शामिल हुए हैं। 18-19 साल की उम्र के पहली बार मतदान करने वाले 22 लाख 36 हजार 564 वोटर हो गए हैं, जो आने वाले विधानसभा चुनाव में पहली बार वोट डालेंगे। वहीं, 80 या इससे अधिक उम्र के मतदाताओं की संख्या 6 लाख 53 हजार 640 है। इसमें 100 वर्ष की उम्र पार करने वाले 5124 मतदाता हैं। इसमें पुरुष 1500 और महिलाओं की संख्या 3500 से ज्यादा है। उन्होंने बताया कि इस बार चुनाव में एक हजार पुरुषों पर 945 महिला मतदाता हैं।
सबसे कम मतदाता बालाघाट में, अधिक मतदान केन्द्र लखनादौन में :
सबसे कम मतदाता- बालाघाट विधानसभा क्षेत्र के मतदान केंद्र क्रमांक 53 सोनेवानी में सबसे कम 42 मतदाता है।
अधिक मतदान केंद्र- सिवनी के लखनादौन विधानसभा क्षेत्र में सबसे अधिक 407 मतदान केंद्र हैं।
सबसे कम मतदान केंद्र- इंदौर के इंदौर-3 विधानसभा क्षेत्र में सबसे कम मतदान केंद्र 193 हैं।
आयुवार मतदाताओं की संख्या
18 से 19 वर्ष -22,36,564
20 से 29 वर्ष – 1,41,76,780
30 से 39 वर्ष – 1,45,03,508
40 से 49 वर्ष – 1,06,87,673
50 से 59 वर्ष – 74,85,436
60 से 69 वर्ष- 43,45,064
70 से 79 वर्ष – 19,72,260
80 वर्ष से ज्यादा – 6,53,640
चार प्रमुख जिलों में मतदाताओं की संख्या
भोपाल-
पुरुष -1,07,4,323
महिला – 1,01,1,736
थर्ड जेंडर-173
इंदौर-
पुरुष -1,39,6,525
महिला – 1,36,5,871
थर्ड जेंडर- 111
जबलपुर-
पुरुष – 9,50,366,
महिला – 9,17,403 महिला,
थर्ड जेंडर-102
ग्वालियर-
पुरुष – 8,59,446,
महिला – 7,66,263,
थर्ड जेंडर-58।
7 लाख 50 हजार से ज्यादा के नाम हटाए
मुख्य निर्वाचन पदाधिकारी ने जानकारी दी कि मध्य प्रदेश में 2 अगस्त से 4 अक्तूबर के मध्य 24 लाख 33 हजार 965 मतदाताओं के नाम जोड़े गए। वहीं, 7 लाख 50 हजार 175 मतदाताओं के नाम हटाए गए हैं। इस तरह कुल 16 लाख 83 हजार 790 मतदाताओं की संख्या में वृद्धि हुई। 15 लाख 1 हजार 146 मतदाताओं के विवरणों में संशोधन की कार्रवाई की जा रही है।
64 हजार 523 मतदान केंद्र
मध्यप्रदेश प्रदेश में 64 हजार 523 मतदान केंद्र हैं। पिछली बार संवेदनशील मतदात केंद्रों की संख्या 17 हजार 70 थी, जिनकी संख्या अभी भी उतनी है।
वरिष्ठ और दिव्यांग घर से डाल सकेंगे वोट
राज्य निर्वाचन आयोग के अनुसार 80 से ज्यादा उम्र के वरिष्ठ और 40 प्रतिशत दिव्यांग वोटरों को घर से मतदान करने का विकल्प दिया जाएगा। इसके लिए उनको फॉर्म भरना होगा। इसके बाद मतदान की तारीख के पांच से छह दिन पहले बैलेट पेपर से वे मतदान कर सकेंगे।
दो किमी की दूरी पर 362 मतदान केंद्र
राजन ने बताया कि इस बार 1500 से अधिक मतदाताओं को ध्यान में रखकर 184 नए मतदान केंद्र बनाएं गए हैं। दो किमी से अधिक की दूरी होने पर 362 मतदान केंद्र बनाए गए हैं। ताकि मतदाताओं को ज्यादा दूर नहीं जाना पड़े। एक मजबूत और पादरर्शी लोकतंत्र के निर्माण के लिए राज्य चुनाव आयोग ने अपनी पूरी तैयारी कर ली है. चुनाव की तारीख घोषित होने के पहले से मतदाता जागरूकता अभियान चलाया गया है जिससे अधिकाधिक मतदान हो सके. समाचार पत्रों और टेलीविजन के साथ रेडियो में लगातार मतदान के लिए प्रेरित करने के लिए आवश्यक जतन किया जा रहा है. सोशल मीडिया पर भी मतदान जागरूकता के लिए विशेष कैम्पेन चलाया जा रहा है. हमारा भी दायित्व है कि हम, हमारा परिवार तो वोट करे ही बल्कि अपने आसपास के लोगों को मतदान के लिए प्रेरित करें. यह कार्य व्यक्तिगत नहीं बल्कि राष्ट्रहित में है. संकल्प लें कि कि राष्ट्रहित में स्वयं वोटिंग करेंगे ही औरों को भी मतदान के लिए प्रेरित करेंगे. क्योंकि आपका एक वोट राज्य और राष्ट्र का भविष्य सुनिश्वित करता है।
#मनोज कुमार, भोपाल
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार एवं शोध पत्रिका ‘समागम’ के संपादक हैं)