संविधान सभा के प्रथम अध्यक्ष की स्मृति में बिहार स्थापना दिवस पर प्रदान किया गया यह सम्मान
पटना। राज्य के रूप में बिहार की स्थापना के सूत्र-नायक थे मुक्त-छंद के पुरोधा कवि, पत्रकार और संपादक बाबू महेश नारायण। उनके ही हृदय में हुए, ‘बिहारी-सम्मान’ के महा-विस्फोट ने बिहार की स्थापना के लिए संघर्ष की चिनगारी और शक्ति प्रदान की, जहां से एक व्यापक आंदोलन का सूत्रपात हुआ। आगे चलकर इसी आंदोलन को महान शिक्षाविद और त्यागी महापुरुष डा सच्चिदानन्द सिन्हा ने, जो भारत की संविधान सभा के प्रथम अध्यक्ष भी हुए, नेतृत्व प्रदान किया और बंग-भंग कराकर ‘बिहार’ की स्थापना करवाई। उनकी स्मृति में स्थापित सम्मान बाल साहित्य के पुरोधा डॉ विकास दवे को देकर हम गौरव की अनुभूति कर रहे हैं।यह बातें शनिवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित ‘बिहार दिवस समारोह’ की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि उन्हें दुःख होता है, जब ‘बिहार दिवस’ मनाते हुए, शीर्ष के लोग इन दोनों दिव्यात्माओं को भूल जाते हैं, जिनकी तपस्या से ‘बिहार’ अस्तित्व में आया।इस अवसर पर, समारोह के उद्घाटन-कर्ता और पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक डा विकास दवे को ‘बिहार निर्माता डा सच्चिदानन्द सिन्हा स्मृति-सम्मान’ से विभूषित किया ।समारोह के मुख्य अतिथि और साहित्य अकादमी, मध्यप्रदेश शासन के निदेशक डा विकास दवे ने विनम्रता से यह सम्मान देशभर के बाल साहित्यकारों की तपस्या को अर्पित किया।इस बात के लिए आभार व्यक्त किया कि आपने मध्यप्रदेश के साहित्य को रेखांकित किया है।बाल-साहित्य पर बल देते हुए डॉ दवे ने कहा कि, संयुक्त राष्ट्र-संघ के एक ताज़ा सर्वेक्षण के अनुसार, आनेवाले दिनों में पूरी दुनिया को आतंकवाद से अधिक बड़ा संकट यह होगा कि नई पीढ़ी पढ़ना लिखना छोड़ केवल देखने और सुनने की अभ्यस्त हो रही है। नई पीढ़ी अध्ययन से दूर होती जा रही है, जो मानव-समुदाय के लिए सबसे बड़ा ख़तरा है। इसलिए हमें संस्कार देने वाले ‘बाल-साहित्य’ का प्रचुरता से सृजन करना चाहिए।
मुख्य-वक्ता के रूप में अपना व्याख्यान देते हुए डा इंदुशेखर तत्पुरुष ने कहा कि, बिहार सदा से वैचारिक-क्रांति की भूमि रही है। आज से सहस्रों वर्ष पूर्व मिथिला नरेश निमि ने यज्ञ कर आध्यात्मिक क्रांति की थी। यह वह धरती है, जहां से संपूर्ण भारत को सांस्कृतिक और राजनैतिक रूप से एक सूत्र में बांधने का सफल यत्न हुआ। महान राजनीति-शास्त्री और अर्थ-शास्त्री चाणक्य ने चंद्रगुप्त को आगे रखकर यह महान उपक्रम किया था,जिससे सारा जगत अवगत है। डा तत्पुरुष ने अनेक उदाहरण से भारत की महान सांस्कृतिक परंपरा में बिहार के अद्वितीय अवदान की विस्तृत चर्चा की।वरिष्ठ लेखक और संपादक डा आशिष कांधवे, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली के हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो सुधीर प्रताप सिंह, डा सुमेधा पाठक, डा अर्चना त्रिपाठी, कुमार अनुपम, डा ध्रुव कुमार, सागरिका राय, डा सीमा यादव, डा शालिनी पाण्डेय, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, चंदा मिश्र, अन्नपूर्णा श्रीवास्तव, डा सुषमा कुमारी, कुमारी भारती, डा नीतू सिंह, आरपी घायल, नूतन सिन्हा, सदानंद प्रसाद, प्रो सुशील कुमार झा, कृष्णा मणिश्री, कमल किशोर कमल, नीरव समदर्शी आदि वरिष्ठ साहित्यकार उपस्थित रहे। अतिथियों का स्वागत सम्मेलन के विद्वान प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने तथा धन्यवाद ज्ञापन सम्मेलन की उपाध्यक्ष प्रो मधु वर्मा ने किया। मंच का संचालन सम्मेलन की साहित्यमंत्री प्रो मंगला रानी ने किया।इस अवसर पर, दूरदर्शन की पूर्व निदेशक रत्ना पुरकायस्थ, डा नागेश्वर यादव, अंबरीष कान्त, बाँके बिहारी साव, शशि भूषण सिंह, आनंद मोहन झा, बिन्देश्वर प्रसाद गुप्त, डा मनोज कुमार, वर्षा कुमारी, पूजा ऋतुराज, रामाशीष ठाकुर समेत बड़ी संख्या में रचनाकार उपस्थित थे।