सब साक्षी थे

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नींद की छाँव में आकाश को बदलते देखा
वह चाँद मेरे बागों में टहलते देखा।
भौरें को कमल में बदले देखा
नीले जल का आकाश देखा ।
बंद आँखों से जो देखा सपना
वह हक़ीक़त नहीं,
मंज़िल की तरफ जाने का
एक यत्न देखा।
पंछी के गीतों का गुंजन स्वर
संध्या अरुणोदय का संगकीर्तन
सब कहते हैं रत्नों का आकाश
अनगिनत ग्रह तारें चलते हैं
बंद आंखों से जो देखा सपना
सब साक्षी थे सच होने में
सब चलते थे मौसीक़ी में
दबाकर चट्टानों को पैरों में।

पुष्पा त्रिपाठी “पुष्प”
साहित्यकार सह शिक्षिका
बेंगलुरू (कर्नाटक)

परिचय :
नाम : पुष्पा त्रिपाठी “पुष्प”
शिक्षा : M.A. (हिंदी साहित्य), B.ed
मूल स्थान : मुंबई

कार्य क्षेत्र : बैंगलोर के प्रतिष्ठित विद्यालय में हिंदी अध्यापिका, शिक्षिका, सह साहित्यकार, हिंदी के लिए सेवा

कर्मस्थल : बैंगलोर (कर्नाटक)
साहित्यिक अनुभव : विभिन्न समाचार पत्रों एवं पत्रिकाओं में आलेख, कविताओं का प्रकाशन, दोहा लेखन, छन्दरहित कविता आदि ।
प्रकाशित पुस्तकें : भाषा सहोदरी 3 काव्यसंग्रह , दीपशिखा काव्यसंग्रह, अपनी अपनी छतरी , वो जो गुमनाम रहे (भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की हृदयस्पर्शी सत्य गाथाएं) अन्य कई पुस्तकों में आलेख व कविताएं
सम्मान : अटल साहित्य सम्मान, सरस्वती साहित्य सम्मान

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