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नजर आता है वह
मेरे अफ़ाक़ पर रोशन आफताब की तरह ।
हयात भी उसे
गुनगुनाती दीवाने – खास ग़ज़ल के किताब की तरह।
उसकी खुशबू से
महकता बज़्म बहकता शामें सहर शराब की तरह।
मदहोश करती नज़रें
लब छूतें लफ़्ज़ जाज़िब पैगाम देती आदाब की तरह।
जुस्तज़ू उसकी
आरज़ू भी ज़ाकिर
खूब जीते उसमें जज़्ब की तरह।
परस्तिश मेरी
खुदा की गुज़ारिश भी वह मिसाले ख्व़ाब की तरह।
डॉ सीमा भट्टाचार्य
बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
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