जीवन का “विवादास्पद” होना
सहनीय है
लेकिन “हास्यास्पद” होना…..
उत्थान और पतन
हास्य और रुदन
यही है जीवन
कलकलाती गंगा में भी
रेत को उड़ते देखा है।
ज़िन्दगी की कहानी को
क्षण भर में मुड़ते देखा है।।
ज़िन्दगी एक पहेली है ।
विश्वसनीय सहेली है।।
प्रेम- भाव उर में जगाकर तो देखो।
सखी को गले से लगाकर तो देखो।।
पल भर में मन से मन मिल जाएंगे।
मुरझाए हुए जीवन-सुमन खिल जाएंगे।।
मदमस्त मधुप आते हैं।
उजाड़ कर चले जाते हैं।।
जीवन के उपवन को सजाना पड़ता है।
खुशी का नया पौधा लगाना पड़ता है।।
आज नहीं तो कल ।
मिलेगा कर्म-फल।।
बिनु दीप जलाए , मिलता नहीं प्रकाश।
सत्कर्म करो, आगे बढो, रखो खुद पर विश्वास।।
ज्योति जलाकर जग को जगमगाना पड़ता है।
खुशी का नया पौधा लगाना पड़ता है।।
#सुनील चौरसिया ‘सावन’
अरूणाचल प्रदेश