कन्धों पर चढ़कर यहाँ तक नहीं आए हैं
रात से सुबह तक में यहाँ तक नहीं आए हैं
सहे हैं कई दर्द और घाव पैरों ने सफ़र में
किसी की बदौलत यहाँ तक नहीं आए हैं
बड़ी मेहनत से बुना है हमने भी ताना-बाना
किसी की गाली सुनी किसी का सुना गाना
मुद्दतों से चल रहे थे सफ़र में हम भी अकेले
हमनें भी ज़िद में कहाँ ठोकरों का बुरा माना
ये कोशिश तो हर बार करते रहे हम भी
भरोसे पर अपनों के चलते रहे हम भी
कभी पीर अंदर की नहीं होने दी बयाँ
अपने हिस्से की मेहनत करते रहे हम भी
ज़माने की नज़रों में नज़र नहीं आए
इसीलिए यहाँ तक भी हम चल पाए
दास्ताँ कहते तो रो देती ये दुनिया
सुना कुछ भी नहीं इसलिए संभल पाए
डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
राष्ट्रीय अध्यक्ष, मातृभाषा उन्नयन संस्थान
अणुडाक: arpan455@gmail.com
अंतरताना:www.arpanjain.com
[ लेखक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं तथा देश में हिन्दी भाषा के प्रचार हेतु हस्ताक्षर बदलो अभियान, भाषा समन्वय आदि का संचालन कर रहे हैं]
लेखक_परिचय-
डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’
मातृभाषा उन्नयन संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष, मातृभाषा व साहित्यग्राम पत्रिका के संपादक व साथ ही, पत्रकारिता के विद्यार्थियों के शिक्षक डॉ. अर्पण जैन ‘अविचल’ मध्य प्रदेश ही नहीं अपितु देशभर में हिन्दी भाषा के प्रचार, प्रसार और विस्तार के लिए निरंतर कार्यरत हैं।
आप कम्प्यूटर साइंस विषय से बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग (बीई-कम्प्यूटर साइंस) में स्नातक होने के साथ आपने एमबीए किया तथा एम.जे. एम सी की पढ़ाई भी की। उसके बाद ‘भारतीय पत्रकारिता और वैश्विक चुनौतियाँ’ विषय पर अपना शोध कार्य करके पीएचडी की उपाधि प्राप्त की। डॉ. अर्पण जैन ने 11 लाख से अधिक लोगों के हस्ताक्षर हिन्दी में परिवर्तित करवाए, जिसके कारण वर्ल्ड बुक ऑफ़ रिकॉर्डस, लन्दन द्वारा आपको विश्व कीर्तिमान प्रदान किया गया।