रेल चली भई रेल चली
अपनी प्यारी रेल चली
इंजन सीटी जब देता है
लगे ख़ुशी की ठेल चली
रेल चली भई रेल चली..
कोई नानी के घर जा रहा
किसी को चाचू बुला रहा
करके ये, धक्कम पेल चली
रेल चली भई रेल चली..
खेतों के बीच पहाड़ों से
पेड़ों के बीच कतारों से
करवाती सबका मेल चली
रेल चली भई रेल चली..
ये छुक-छुक करती चलती है
मन धुक-धुक, धुक-धुक करता है
मस्ती की रेलमपेल चली
रेल चली भई रेल चली..
जब बीच में स्टेशन आता है
ख़ुशियों की कड़ियाँ जुड़ती हैं
लगता है जैसे बगिया में
अमरप्रेम की बेल चली
रेल चली भई रेल चली..
अपनी प्यारी रेल चली..
सुषमा सिंह,
दिल्ली
परिचय-
नाम : सुषमा सिंह
( विद्यावाचस्पति (मानद) और विद्या सागर (मानद) उपाधियों से विभूषित )
शिक्षा : एम.एस.सी.
संप्रति : भारत मौसम विज्ञान विभाग, लोधी रोड, दिल्ली।
विधाएँ : कविता, गीत, छंद, मुक्तक, महिया, बाल कविताएँ, कहानी, लघुकथा।
विशेष : दूरदर्शन के विभिन्न कार्यक्रमों में भागीदारी ।
प्रकाशित संग्रह :
● साहित्य अकादमी द्वारा प्रकाशित ‘प्रतिनिधि बाल कविता संचयन’ में बाल कविताएँ ।
● मधबुन एजुकेशनल (कक्षा 4) में बाल कविता ।
● ‘नन्हा पाखी’ बाल कविताओं का संग्रह
● ‘कच्चा पापड़’ बाल कविताओं का संग्रह