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अमरनाथ यात्रियों की मौत पर आंसू बहाऊं,
या झुलसते बंगाल की दास्तान पहले सुनाऊं।
बढ़ती महंगाई,भूख से बिलखतों को सहलाऊं,
या अन्नदाता की तबाही का मंजर तुम्हें दिखाऊं॥
आपस में बंटते भाई-भाई की दास्तान सुनाऊं,
या तार-तार होते सुनहरे सपनों का सच बताऊं।
रहनुमा की रहनुमाई पर झर-झर आंसू बहाऊं,
या आम आदमी की फूटी किस्मत तुम्हें दिखाऊं॥
अच्छे दिनों के आने की खुशी में झूमूं नाचूं गाऊं,
या महंगी दाल-सब्जी,सस्ते इंसान के गुण गाऊं।
किसान मजदूर व्यापारी दवा विक्रेता को सच मानूं,
या नित नए फरमान की सच्चाई से दिल बहलाऊं॥
ये भी दुखी,वो भी दुखी,जब सब ही दुखी दिखते हों,
तो दुखियारों की भीड़ में सुख तलाशने मैं कहां जाऊं।
नाइंसाफी होगी गर समुद्र छोड़ कतरे पर आंसू बहाऊं,
पूरी तस्वीर से नजर फेर उसका एक टुकड़ा ही दिखाऊं॥
दोष किसे दूं खुद को या उसे जिसने ये हालत दिखाई,
सच तो ये है कि ये भी है आधा फसाना।
आधी सच्चाई टुकड़ों में बाँटकर मैं हालात को नहीं देख सकता
मेरे सामने सात नहीं सारी मौतों की तस्वीर उभर आई॥
तुम्हारे कहने पर मैंने अपना मौन तोड़ तो दिया,
लेकिन देख सच्चाई बिन बारिश आंखे भर आई॥
#डॉ. देवेन्द्र जोशी
परिचय : डाॅ.देवेन्द्र जोशी गत 38 वर्षों से हिन्दी पत्रकार के साथ ही कविता, लेख,व्यंग्य और रिपोर्ताज आदि लिखने में सक्रिय हैं। कुछ पुस्तकें भी प्रकाशित हुई है। लोकप्रिय हिन्दी लेखन इनका प्रिय शौक है। आप उज्जैन(मध्यप्रदेश ) में रहते हैं।
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