कभी दिलकी सुनकर देखो।
उसकी धड़कनो को पहचानो।
फिर संजय के दिलको सुनो।
शायद तुम्हारा दिल पिघल जाये।
और दिलमें मोहब्बत जग जाये।।
दिल को दिल में देखो।
सोये प्यार को जगा के देखो।
चाँद तारों के बीच में
दिल चमकता दिखेगा।
तब तुम्हें मोहब्बत
होने का पता चलेगा।।
मोहब्बत वो होती है
जो लवो से निकलकर।
दिल दिमाग में बैठ जाती है
सांसें बनकर दिल धड़कती है।
और अंदर ही अंदर मोहब्बत
होने का एहसास करवाती है।
और प्रेमीयों को बुला के
मिलने का साहस देती है।।
तुम अबतक मोहब्बत को
खेल समझ रही थी।
और दिलकी भवानाओं
से खेल रही थी।
जब मोहब्बत का काँटा
स्वयं के दिलको चुभा।
तो कांटे से ज्यादा
तुम खुद रो रही थी।।
जो मेहबूब का इंतजार करते है
दिलसे उसे प्यार करते है।
लाख कांटे बिछे हो
मेहबूब की राह में।
फिर भी उन पर चलकर
मेहबूबा के लिए आयेगा।
और अपनी मोहब्बत को
वो परवान चढ़ायेगा।।
दिलकी आवाज़ से
नग़्में बदल जाते है।
मतलब न हो तो
अपने बदल जाते है।
कितनो ने इस दिलसे
अब तक खेला है।
पर दिल तो आज भी
मोहब्बत के लिए नया नबेला है।।
जय जिनेंद्र देव
संजय जैन “बीना” मुंबई