मित्र वह जो विपत्ति में काम आए।अर्थात मुसीबत, कष्ट,आपदा,मुश्किल,संकट जैसे क्षणों मे सहभागी बने,सहयोग करे वह मित्र कहलाता है।
दूसरी ओर जो विपत्ति,मुसीबत,कष्ट,आपदा,मुश्किल,संकट इत्यादि का कारण बने और असहयोग करे वह शत्रु से भी धूर्त माना जाता है या यूँ कहें कि जिसके ऐसे मित्र हों उन्हें शत्रुओं की आवश्यकता ही नहीं रहती।
आज के दौर में कुछ इसी प्रकार की मित्रता के किस्से प्रचलित हैं।जो बैठते तो मित्र के पास हैं और पक्ष शत्रु का लेते हैं।क्या ऐसे मित्रों से दूरी नहीं बनानी चाहिए।क्योंकि ना जाने कब धोखा दे जाएं?जबकि सच्चाई यह है कि वर्तमान मित्र 'मित्र' शब्द की पवित्रता का अर्थ भूल चुके हैं।
कड़वा सच तो यह भी है कि ऐसे मित्रों से वह शक्तिशाली शत्रु भले जो ठेठ शत्रुता के चलते अपना-अपना रास्ता नापते हैं और अपने शत्रु के जीवन-चक्र से दूर ही रहते हैं।
इंदु भूषण बाली