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घरों में रहना ही अब हो गया काम
दुनिया का दस्तूर कब बदल गया हे राम
आदमी तो आदमी जानवर भी भूखे सो रहे
निठल्लों का पता नहीं मेहनतकश रो रहे
ना एंबुलेंस की कांय – कांय
ना पुलिस गाडियों की उड़े धूल
बस्तियों में बरसे सुख – चैन
मंदिरों में श्रद्धा के फूल
तारकेश कुमार ओझा
लेखक पश्चिम बंगाल के खड़गपुर में रहते हैं और वरिष्ठ पत्रकार हैं।
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